________________
१३८] चौथा अध्याय गया इससे उनके भोग उपभो। की वास्तविक मान्यता साबित होती है जोकि प्रचलित सर्वज्ञता में बाधक है।
यदि केवली के केवलज्ञान के सिवाय अन्य ज्ञान न माने जाँय तो केवली भोजन भी न कर सकेंगे । क्योंकि आँखों से देखे बिना भोजन कैसे किया जा सकता है ? केवलज्ञान से भोजन देखेंगे तो केवलज्ञान से तो त्रिकाल त्रिलोक के पवित्र--अपवित्र अच्छे बुरे सब पदार्थ दिखते हैं इसलिये अमुक भोज्यपदार्थ की तरफ़ उन का उपयोग कैसे लगेगा ?
प्रश्न-श्वेताम्बर लोग केवली का भोजन स्वीकार करते हैं परन्तु दिगम्बर लोग स्वीकार नहीं करते । इसलिये दिगम्बरों के लिये यह दोष लागू नहीं हो सकता ।
उत्तर--दिगम्बर लोग जैसे केवली की पूजा करते हैं उसी प्रकार श्वेताम्बर भी करते हैं । भक्त लोग अतिशयों की कल्पना ही किया करते हैं, वास्तविक अतिशयों को मिटाते नहीं हैं । यदि केवली के भोजन के अभाव का अतिशय होता तो कोई कारण नहीं था कि श्वेताम्बर लोग उस अतिशय को न मानते । इसीलिये यह पीछे की कल्पना ही है । दूसरी बात यह है कि दिगम्बर लोग भी क्षुधा परिषह तृषा परिषह तो मानते हैं । यदि केवली को भूख और प्यास लगती है तो वे भोजन क्यों न करते होंगे ? दूसरे अध्याय में भी इस विषय में लिखा गया है । केवली के भोजन न मानना, यह सिर्फ अन्धभक्ति की कल्पना है जो कि केवलज्ञान के कल्पित स्वरूपमें आती हुई बाधा को दूर करने के लिये की गई है।