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केवली के अन्य ज्ञान
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है, बस्त्र उपभोग है । केवली के जब भोग और उपभोग माना जाता है तब यह निश्चित है कि उनके इन्द्रियाँ भी होती हैं, और वे विषय -ग्रहण करतीं हैं । इन्द्रियों के सद्भाव से मतिज्ञान सिद्ध हुआ । इस तरह केवली के जब मतिज्ञान आदि भी सिद्ध होंगे तब यह कहना अनुचित है कि उनके सदा केवलज्ञान या केवलदर्शन का उपयोग होता है । क्योंकि मतिज्ञान के उपयोग के समय केवलज्ञान का उपयोग नहीं हो सकता और केवली के मतिज्ञान सिद्ध होता है । प्रश्न- केवली को भोग और उपभोग के साधन मिलते हैं किन्तु उनका भोग या उपभोग केवली नहीं करते क्योंकि भोग और उपभोग मानने से केवली में एक तरह की आकुलता - व्याकुलता मानना पड़ेगी जोकि ठीक नहीं ।
उत्तर-- भोग और उपभोग के होने पर भी आकुलता - व्याकुलता का मानना आवश्यक नहीं है । कोई महात्मा सुगंध मिलने पर उसका उपयोग कर लेता है. न मिलने पर उसके लिये व्याकुल नहीं होता । यहाँ पर सुगंध का भोग रहने पर भी अकुलता - व्याकुलता बिलकुल नहीं है । केवली के भी इसी तरह भोग होते हैं यहाँ आकुलता - व्याकुलता का प्रश्न ही नहीं है । बात इतनी ही है कि किसी ने सुगंधित फूल बरसाये और उनकी सुगंध चारों तरफ फैली तो कवली की नाक में गई कि नहीं ? अगर गई तो उसका उनको अनुभव क्यों नहीं होगा ! यदि न होगा तो केवली के भोग उपभोग बतलाने का क्या मतलब था ? जिस प्रकार भोगान्तराय आदि का नाश होने पर सिद्धों में भोग उपभोग का नाश बतलाया गया उसी प्रकार अर्हन्त के भी बताना चाहिये था, परन्तु ऐसा नहीं किया