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केवली के अन्य ज्ञान परिषहें बतलाई गई हैं । ग्यारहवें सूत्र में जिनेन्द्र के ग्यारह परिषहें बतलाई हैं, और बारहवें सूत्रमें बादरसांपरायके सब परिषहें वतलाई गई हैं । ग्यारहवें सूत्रमें जिनेन्द्र के चाहे ग्यारह परिषहों का अभाव कहो या सद्भाव बात एक ही है । बाईस में से ग्यारह मानों तो ग्यारह का निषेध है, और ग्यारह न मानों तो ग्यारह की विधि है ।
प्रश्न-अगर केवली के परिषहें मानी जायेंगी तो उनके आश्रव भी मानना पड़ेगा । क्योंकि परिषह--जय को संवर का कारण कहा है इसलिये परिषह आश्रव का कारण कहलाया। केवली के आश्रव नहीं होते इसलिये उनके परिषह नहीं माने जा सकते।
उत्तर--परिषह-जय संवर का कारण है । इसलिये परिषह का अजय आश्रव का कारण कहलाया न कि परिषह का होना । परिषह तो दोनों ही जगह हैं, चाहे जय हो या अजय । बारहवें गुणस्थान में परिषहें हैं पर इसीलिये आश्रव नहीं होता । असली पक्ष-प्रतिपक्ष जय और अजय हैं । परिषह वेदनाय का कार्य है । जय और अजय का सम्बन्ध मोहनीय से है । वेदनीय अपना काम करे तो वहाँ परिषह होगी अर्थात् उस प्राणी को वेदना होगी किन्तु अगर मोहनीय का प्रबल उदय है तो वेदना से वह क्षुब्ध हो जायगा और उसमें रागद्वेष पैदा हो जायेंगे यह परिषह का अजय कहलायगा और इससे आश्रव होगा । अगर मोहनीय का उदय नहीं है तो परिषह की वेदना होने पर भी-उसके विषय में अनुकूलता-प्रतिकूलता का ज्ञान होने पर भी क्षोभ न होगा-रागद्वेष न होगा। यह परिषह का