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१२० ] चौथा अध्याय महावीर दोनों को समान प्यारे हैं । दोनो ही उन्हें सर्वज्ञ आदि मानते हैं। इसलिये दोनों के वर्णनों में जिसका वर्णन सम्भव और स्वाभाविक होगा उसीका मानना उचित है ।
इसके अतिरिक्त एक बात यह है कि दिगम्बर साहित्य में भी केवलियों के वार्तालाप प्रश्नोत्तर आदि का वर्णन मिलता है ।
(घ ) श्रीधवल में पाँचवें अंगके स्वरूपके वर्णन में लिखा है १ कि----"गणधर देव को जो संशय पैदा होते हैं उनका छेदन जिस प्रकार किया गया तथा बहुतसी कथा उपकथा का वर्णन इस अंगमें है"।
गौतम को जीव अजीव के विषय में संदेह हुआ था जिस को दूर कराने के लिये वे महावीर के पास आये थे। पीछे महावीर के शिष्य होकर उनने द्वादशांग की रचना की थी २ ।
श्रीधवलके ये दोनों अंश गौतम और महावीर के बीच में प्रश्नोत्तर होने के सूचक हैं।
इसके अतिरिक्त राजवार्तिक से भी मालूम होता है कि गौतम प्रश्न करते थे और महावीर उत्तर देते थे "विजयादि के देव कितने बार गमनागमन करते हैं" इस प्रकार गौतम के पूछने पर भगवान
१ णाहवम्मकहा गणहर देवस्स जादमंसयस्स संदेहाछिदण विहाणं, बहु विहकहाओ उवकहाओ चवण्णेदि ।-~श्रीधवल ।
२ तम्हि चेवकाले तन्थेव खित्ते खयोवसम जणिद चउरमल बुद्धि संपण्णेण अम्हणण जीवाजीवविसयसंदेह विणासण? मुवगय बहुमाणपाद मूलेण इन्दभूदिणा वहारिदो।