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केवली और मन [१०३ नहीं। यह बात अनुभव से युक्ति से और आगम के कथन तथा उसके ऐतिहासिक निरीक्षण से स्पष्ट हो जाती है। ..
केवली और मन ___यहाँ तक के विवेचन से पाठक समझ गये होंगे कि जैनशास्त्रों के अनुसार केवली, सदा ज्ञानोपयोगी नहीं होता और न वह सदा सब वस्तुओं को जानता है। यह मत सबसे प्राचीन है । दिगम्बर श्वेताम्बर आचार्यों के जो इस से भिन्न मत हैं वे इस से अर्वाचीन हैं।
केवली सब वस्तुओं को एक साथ नहीं जानते इस विषय में और भी बहुतसी विचारणीय बातें हैं जिनका यहाँ उल्लेख किया जाता है।
इस विषयमें विशेष विचारणीय बात यह है कि केवली के मनोयोग होता है । जहाँ मनोयोग है वहाँ सब वस्तुओं का एक साथ प्रत्यक्ष हो नहीं सकता (१) क्योंकि मन, एक समय में एक तरफ ही लग सकता है। केवली के मनोयोग होता है यह दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायों को मान्य है (२)
"केवली के मनोयोग होता है" इस मान्यता से यह बात स्पष्ट है कि केवली, युगपत् सर्व वस्तुओं का साक्षात्कार नहीं कर
(१) चित्रापि नेंदियाई समेइ सममह य खिप्पचारिति । समयं व सुकसक्कुलिदसणे सम्बोवलद्धिति । विशेषावश्यक २४३४ ॥
(२) संझिमिथ्यादृष्टेरारब्धौ यावत् सयोगकेवली तावदाचतुर यौ मनोयोगी लयेते । तत्वार्थ सिद्धसेन टकिा २-२६ (थे.)." योगानुवादेन त्रिषु योगेषु प्रयोदश गुणस्थानानि भवन्ति । सवार्थसिद्धि-१-८॥