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चौथा अध्याय
कैसे होगा ? यदि वह जीव और अजीव दोनों की सत्ता का प्रतिभास एक समय में करेगा तब वह महासत्ता का प्रतिभास होगा इसलिये दर्शनोपयोग हो जायगा । इससे यह सिद्ध हुआ कि कोई भी ज्ञानोपयोग एक ही समय में [ युगपत् ] सब पदार्थों का प्रत्यक्ष नहीं
कर सकता ।
आगम से भी मेरे इस वक्तव्यका कुछ समर्थन होता है । पहिले मैं पण्णवणा सूत्र के महावीर गौतमसंवादका उल्लेख कर आया हूं जिसमें गौतम महावीर स्वामी से पूछते हैं कि जिस समय केवली रत्नप्रभा पृथ्वी को देखता है क्या उसी समय रत्नप्रभ। पृथ्वी को जानता भी है ? महावीर स्वामी कहते हैं 'नहीं' । फिर गौतम यही प्रश्न शर्कराप्रभा पृथ्वी के विषय में भी करते हैं, फिर बालुकाप्रभा, इसी प्रकार सब पृथिवियों के विषय में करते हैं। फिर यही प्रश्न सौधर्म आदि के विषय में, परमाणु से लेकर अनंतप्रदेशी स्कंध के विषय में करते हैं । इससे मालूम होता है कि केवली का उपयोग कभी रत्नप्रभापर कभी सौधर्म स्वर्गपर, कभी ग्रैवेयकपर कभी परमाणु पर कभी स्कंधपर, पहुँचता है । उनका ज्ञानोपयोग एक साथ त्रिकाल त्रिलोक पर नहीं पहुँचता । यदि उनका ज्ञानोपयोग सदा त्रिलोकत्रिकालव्यापी होता तो रत्नप्रभा शर्कराप्रभा आदि के विषय में किये जाते । इससे मालूम होता है कि केवली के जब कभी ज्ञानोपयोग होता है तब सब द्रव्यपर्यायों पर नहीं, किसी परिमित विषय पर होता है ।
जुदे जुदे प्रश्न न
प्रश्न- एकत्व के साथ अनेकत्व का अविनाभावी सम्बन्ध है, जहां जहां एकत्व है वहाँ वहाँ अनेकत्व भी, इस ही प्रकार समानता