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तीसरा युक्तपाभास
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पास में जो कुछ दिखाई दिया उसी को म. महावीर आदि के मुख से कहाकर भविष्यज्ञता का परिचय दिया गया है। अगर आज कल की मान्यता के अनुसार कोई सर्वज्ञ होता तो उसने इस विज्ञानिक युग की ऐसी सूक्ष्म बातों का इतना अच्छा भविष्य कहा होता कि सुनने वालों को सर्वज्ञता अवश्य मानना पड़ती |
शास्त्रों में जहाँ जहाँ जो जो भविष्य कहा गया है उस सबको सामने रखकर विचार किया जाय तो साफ मालूम होगा कि उसमें सर्वज्ञतासाधक तो एक भी बात नहीं है, साथ ही असाधारण पांडित्य की साधक बातें भी कम हैं । महात्मा महावीर के
दो एक बातों
साथ उनका सम्बन्ध नहीं के बराबर है। यहां मैंने की आलोचना की है परन्तु अन्य सब बातों की आलोचना भी इसी तरह की जा सकती है । इसलिये भविष्य कथनों को तथा दूसरे कुछ कथनों को सर्वज्ञसिद्धि के लिये उपस्थित करना अनुचित और निष्फल है। इसके अतिरिक्त भूगोल, ज्योतिष आदि की गड़बड़ी और वर्तमान वैज्ञानिक शोध के सामने उसका न टिक सकना तो उस विषय की प्रामाणिकता को बिलकुल निर्मूल कर देता है । वास्तविक सर्वज्ञता क्या हैं और किसलिये है इसकी हमें खोज करना चाहिये, कोरी कल्पनाओं के जाल में पड़कर असत्य के पीछे रहे सहे सत्य की हत्या न करना चाहिये | अपनी मान्यता की अन्धश्रद्धा से जिन्दगी भर उसे सत्य सिद्ध करने को कोशिश करते रहना या उसके सत्य सिद्ध होने की बाट देखते रहना आत्मोद्धार और सत्यप्राप्ति के मार्ग को बंद कर देना है ।
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