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तीसरा युक्त पामास नहीं, शास्त्रकी प्रत्येक शाखाम आज अद्भुत गम्भीरता आगई है और अनेक नये शास्त्र बन गये हैं । साहित्यकी कला आदिका कई गुणा विकास हुआ है । विद्याप्रचारके अगणित साधन प्राप्त हुए हैं । इन सब बातों को देखकर कौन कह सकता है कि आज सर्पिणी है । हाँ, अन्वश्रद्वालु अहंकारग्रस्त जीवों की बात दूसरी है । ब मृतकाल के अन्नामाणिक और अविश्वसनीय स्वप्नों के गीत गातर जो चाहे कह सकते हैं।
जब यंत्रों का विकास और प्रचार हुआ तब शरीरसे काम कम लिया जाने लगा । ऐसी अवस्थामें शरीर कमजोर हो यह स्वाभाविक है, परन्तु इसीसे अवसर्पिणी नहीं कही जासकती; क्योंकि दूसरी दिशामें बहुत अधिक उत्सर्पिणी दिखाई देती है।
___इस अवसर्पिणीमें उत्सर्पिणी होने लगी है इस बातको जैनी भी स्वीकार करते हैं, किन्तु अवसर्पिणीपन कायम रखनेके लिये कहते हैं कि पंचमकालमें आरेकी तरह अवसर्पिणी होगी : जिस प्रकार
आरे के एक तरफसे दूसरी तरफ का भाग नीचा होता है किन्तु बीच बीचमें ऊँचानीचा होता रहता है उसी प्रकार पंचमकामें उन्नति और अधनति होती जायगी। परन्तु आजकलकी उन्नति तो पंचमकाल के प्रारम्भसे भी अधिक है, बीचकी यह ऊँचाई कैसी ? कहनेकी जरूरत नहीं कि यह लीपापोती है ।
शंका-- आजकल भौतिक उन्नति भलेही हुई हो परन्तु धार्मिक उन्नति तो नहीं हुई; इसलिये अवसर्पिणी ही कहना चाहिये।
उत्तर- तब तो प्रथम, द्वितीय, तृतीय काल की अपेक्षा चौथ ‘कालको ज्यादः उन्नत मानना चाहिये क्योंकि पहिले तीर्थङ्कर नहीं