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चौथा अध्याय .. खैर, यहां तो इतना ही कहना है कि चन्द्र आदि की गति को बहुत दिन तक ध्यान पूर्वक देखने से उस की घटती बढ़ती ग्रहण आदि के नियम का पता लग सकता है इसके लिये सर्वज्ञ मानने की जरूरत नहीं है ।
प्रश्न-बड़े बड़े ज्योतिष शास्त्र के रचयिताओं ने ज्योतिष ज्ञान का मूलाधार सर्वज्ञ माना है अन्य अनेक दार्शनिक विद्वानों ने भी ज्योतिष ज्ञान का आधार सर्वज्ञ ज्ञान माना है सर्वज्ञ द्वारा ज्योतिष ज्ञान प्रतिपादन में आपत्ति भी नहीं, तब क्यों न ज्योतिष ज्ञानका आधार सर्वज्ञ माना जाय।
उत्तर-आज कल जो बड़े बड़े शास्त्र बने हैं उनमें सर्वज्ञ तो दूर आत्मा का भी पता ही है इस देश के पुराने ग्रंथकारों में अवश्य बहुत से ऐसे हुए हैं जिनने ज्योतिष ज्ञान आधार सर्वज्ञ ही नहीं ईश्वर माना है तब इसीलिये क्या शास्त्रोंको ईश्वर-प्रणीत मानले ? यह तो इस देशका दुर्भाग्य है कि ज्योतिष सरीखे वैज्ञानिक क्षेत्र में काम करने वाले भी स्वरुचिविरचितत्व से डरते थे इसलिये पद पद पर सर्वज्ञ की दुहाई दिया करते थे। सर्वज्ञ द्वारा ज्योतिष के प्रतिपादन में आपत्ति भले ही न हो पर सर्वज्ञ के सिद्ध होने में ही बड़ी आपत्ति हैं।
भविष्य की बातें जो शास्त्र में लिखी हैं वह सिर्फ लेखकों का मायाजाल है । शास्त्रों में ऐसा कोई प्रामाणिक भविष्य नहीं मिलता जो शास्त्ररचनाके बाद का हो । शास्त्रों में महावीर या गौतम
आदि के मुख से कुंदकुंद हेमचन्द्र आदि का भविष्य कहला दिया गया है; परन्तु यह सब उन्हीं ग्रंथों में है जो इन लोगों के बाद