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तीसरा युक्त्याभास आदि की बातें बता देते हैं और जितनी खोजको हम सर्वज्ञ बिना मानने को तैयार नहीं हैं उससे कई गुणी खोज आजकल के असर्वज्ञ वैज्ञानिक कर रहे हैं । ज्योतिष आदि की खोजसे सर्वज्ञ की कल्पना करना कूपमंडूकता की सूचक है।
चन्द्रग्रहण सूर्यग्रहण आदि के नियमों का ज्ञान सर्वज्ञतामूलक नहीं इसका एक प्रमाण यह भी है कि विश्वरचना के विषय में नाना मत होते हुए भी सभी ज्योतिष शास्त्र उनका समय बता देते हैं । जैन लोग दो सूर्य दो चन्द्र और चपटी पृथ्वी आदि मानकर ग्रहण बताते हैं दूसरे लोग एक सूर्य आदि इससे भिन्न भूगोल मानकर ग्रहण बताते हैं | आधुनिक ज्योतिषी पृथ्वी को गोल तथा तथा चल मानकर ग्रहण ताते हैं। इससे मालूम होता है कि इस योतिष के मूल में सर्वज्ञ नहीं है ।
ज्योतिष ज्ञान के विषय में आज का जमाना पुराने सर्वज्ञों से बहुत बड़ा है, तारों का आकार प्रकार, उनसे आने वाले प्रकाश की गति उनकी दूरी उनकी किरणों की परीक्षा, उन किरणों से वहां के पदार्थों की स्थिति, धरातल के ऊपर ऊपर वायुमण्डल का पतला पतला होना नये नये ग्रहों की शोध आदि बहुत सी बातें हैं जिन से अच्छी तरह पता लग सकता है कि पुराने सर्वज्ञयुग से आज का असर्वज्ञ युग कितना बढ़ गया है। पुराने शात्रों की तुलना करने की यहां जरूरत नहीं है । पूर्वजों ने अपने समय में यथाशक्य बहुत किया हम उनके कृतज्ञ हैं पर इसीलिये उन्हें या उनमें से किसी को सर्वज्ञ नहीं कहा जा सकता है। हां, सर्वज्ञता का जो व्यावहारिक अर्थ है उसकी अपेक्षा वे सर्वज्ञ अवश्य थे।