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दूसरा युख्याभास वृक्षों को जितना ज्ञान है वह भी इतना महान है कि सूक्ष्म निगोदके जघन्य ज्ञान में अनन्तवार अनंत का गुणा किया जाय तब वृक्षों के ज्ञान का परिमाण बनेगा । कीट पतंगों के पात्र की महत्ता का तो पूछना ही क्या है । इससे उस निगोद प्राणी' के ज्ञान की क्षुद्रता समझ सकते हैं कि वह कितने पदार्थों को जाना होगा ।
इतने क्षुद्र ज्ञान में भी जब जीव पुद्गल काल आपस आदि की राशि से अनन्तानन्त गुणें अविभाग प्रतिच्छेद हैं अर्शी खाने अविभागप्रतिच्छेदों को रखकर भी जीव इतने थोड़े पदार्थों को जान पाता है तब बोरान सरीखी किसी सर्वोत्कृष्ट चीज को जानना हो तो उसके लिये कितने अविभाग प्रतिच्छेद चाहिये कम से कम केवलज्ञान से अधिक तो अवश्य चाहिये । इसका मतलब यह हुआ कि केवलज्ञान के द्वारा केवलज्ञान नहीं जाना जा सकता। तब प्रश्न होता है कि सर्वज्ञता कैसे रही क्योंकि केवलज्ञान दूसरों के केवलज्ञान को जान ही नहीं पाया ।
अगर जैनशास्त्रों के अविभाग प्रतिच्छेदों के वर्णन को सत्य मान लिया जाय तब यह मानना ही पड़ेगा कि ज्ञेय की अपेक्षा मान में अविभाग प्रतिच्छेदों की संख्या बहुत चाहिये । इसलिये केवल हान दूसरे केवलियों से अज्ञात ही रहा और इतने अंशमें उनकी सर्वज्ञता छिन गई। । अगर यह कहा जाय कि किसी पदार्थ को जानने के लिये ज्ञान में उतने अविभाग प्रतिच्छेदों की जरूरत नहीं है जितने और में हैं । तब प्रश्न होता है कि निगोद जीव के इतने अविभाग भनिन्छेद को बताये गये।