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सर्वज्ञत्व और जैनशास्त्र [ ८९ उसका उपयोग भी सदा होना चाहिये-यह नियम नहीं बन सकता ।
प्रश्न---जो लब्धियाँ क्षायोपशमिक हैं उनका उपयोग सदा न हो, यह हो सकता है; परन्तु जो क्षायिक लब्धि है उसके विषय में यह बात नहीं कही जा सकती ।
उत्तर-लब्धि और उपयोग का क्षयोपशम और क्षय के साथ कोई विषम सम्बन्ध नहीं है । क्षयोपशम से अपूर्ण शक्ति प्राप्त होती है और क्षय से पूर्ण शक्ति प्राप्त होती है । क्षयोपशम में थोड़ी शक्ति भले ही रहे परन्तु जितनी शक्ति है उसको तो सदा उपयोग रूप रहना चाहिये । यदि क्षायोपशामक शक्ति लब्धि रूपमें रहते हुए भी उपयोग रूप में नहीं रहती तो केवलज्ञान भी लब्धिरूप में रहते हुए उपयोग रूप में रहना ही चाहिये ऐसा नियम नहीं बनाया जा सकता (१)
दूसरी बात यह है कि अन्य क्षायिक लब्धियाँ भी उपयोगरहित होती हैं । अन्तराय कर्म के क्षय हो जाने से केवली को दान लाभ भोग उपभोग और वीर्य ये पांच क्षायिक लब्धियाँ प्राप्त होती हैं । परन्तु इस विषय में दिगम्बर और श्रेताम्बर सभी एकमत हैं कि इन लब्धियों का उपयोग सदा नहीं होता (२), खास कर दानादि चार लब्धियों का उपयोग सिद्धों के तो नहीं ही होता, यद्यपि अन्तराय कर्म का क्षय रहता ही है ।
(१)विशेषावश्यककी यह गाथा भी इसी बात का समर्थत करती है
देसक्खए अजुत्तं जुगवं कसिणोभओवआओगत्तं । देसोमओवओगो पुमाइ पडिसिज्जए कि सो-३१०५
(२)अह ण वि.एवं तो सुण, नहेव खीणन्तरायओ अरिहा । संतेवि अन्तरायक्खयंमि पंचप्पयारम्मि ।। सययं न देइ लहइ व, भुंजइ उवभुंजई य सवण्ण । कज्जमि देह लहइ य भुंजइ व तहेव इहयंपि ॥ नन्दीवृत्ति ।