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सर्वज्ञत्व और जैनशास्त्र
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प्रश्न- क्षायोपशमिक लब्धियाँ उपयोगात्मक होने में अन्य साधनों की अपेक्षा करती हैं, मतिश्रुत आदि ज्ञान इन्द्रिय मनकी सहायता चाहते हैं, अवधिमन:पर्यय में भी इच्छा की जरूरत है, दानादि के लिये बाह्य साधन चाहिये, पर केवलज्ञानी में यह बात सम्भव नहीं, उनके इच्छा नहीं होती, केवलज्ञान में बाह्य निमित्तों की जरूरत नहीं है इसलिये वह सदा उपयोगात्मक ही रहेगा ।
उत्तर - यदि दानादि क्षायिक लब्धियों को भी पर निमित्त की आवश्यकता है तो केवलज्ञान को भी पर निमित्त की आवश्यकता हो, इसमें क्या विरोध है ? पर पदार्थों को जानना पर निमित्त के बिना नहीं हो सकता । केवलज्ञान को भी पर निमित्त की आवश्यकता है इसलिये वह सदा उपयोगात्मक नहीं रह सकता । रही इच्छा की बात, सो जैसे केवली के बिना इच्छा के दान लाभ भोग उपभोग हो जाते हैं उसी प्रकार ज्ञान भी हो जायगा | अन्य क्षायिक लब्धियों के उपयोग रूप होने में जब इच्छा नहीं कूदती तो यहीं क्यों कूदेगी ।
इस प्रकार केवलज्ञान सदा उपयोग रूप नहीं माना जा सकता ।
केवलज्ञानोपयोग का रूप
आजकल क्रमवादी भी यही समझते हैं कि जब केवलदर्शन उपयोग रूप होता है तब त्रिकाल त्रिलोक के पदार्थों का युगपत् विशेष प्रतिभास होता है । परन्तु यह विचार ठीक नहीं है, क्योंकि यह बात असम्भव है । एक समय में सब पदार्थों का सामान्य प्रतिभास तो किसी तरह उचित कहा जा सकता है किन्तु सब पदार्थों का