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चौथा अध्याय .. केवलज्ञान के अविभाग प्रतिच्छेदों का जो परिमाण बताया गया है उससे भी मालूम होता है कि ज्ञेय की अपेक्षा ज्ञान में अविभागप्रतिच्छेद अधिक चाहिये । निगोद ज्ञान के अविभाग प्रतिच्छेदों में ही जब जीव पुद्गल और अनन्तकाल अनन्तक्षेत्र समागया तब केबलबान के अविभाग प्रांतच्छेदों का क्या पूछना ! उससे अनन्तानन्त गुणा अनन्तानन्तबार करना पड़ता है । - इसमे सिद्ध होता है कि केवलज्ञान दूसरे केवलज्ञान को नहीं जान सकता । अथवा ज्ञानके अविभाग प्रतिच्छेदों का वर्णन ठीक नहीं है । यह सर्वज्ञता के विरोध एक शास्त्रीय बाधा भी है ।
तीसरा युक्त्याभास प्रश्न-अमुक दिन ग्रहण पड़ेगा तथा सूर्यचन्द्र आदि की गतियों का सूक्ष्मज्ञान बिना सर्वज्ञ के नहीं हो सकता । भविष्य की जो बातें शास्त्रों में लिखी हैं वे सच्ची साबित हो रही हैं। पंचम काल का भविष्य आज हम प्रत्यक्ष देख रहे हैं। अवसर्पिणी की रंचना भी साफ़ मालूम होती है। और भी बहुतसी बातें है जो हमें शास्त्र से ही मालूम होती हैं। उनका कोई मूलप्रणेता अवश्य होगा जिसने उन बातों का ज्ञान शास्त्र से नहीं, अनुभव से किया होगा।
उत्तर-आज जो जगत् को ज्योतिषसम्बन्धी ज्ञान है वह किसी सर्वज्ञका बताया हुआ नहीं है किन्तु विद्वानों के हजारों वर्ष के निरीक्षण का फल है । तारा आदि की चालें आँखों से दिखाई देती हैं, उनके ज्ञान के लिये संत्रज्ञ की कोई जरूरत नहीं है । जो लोग जैनधर्म, जैनशास्त्र और जैन भूगोल नहीं मानते वे भी महण