________________
८०]
चौथा अध्याय किसी भी पदार्थ का अभाव सिद्ध करना है, साथ ही उम पदार्थ का स्मरण होना भी जरूरी है जिसका अभाव करना है । सर्वज्ञ को अभाव कालत्रय और लोकत्रय में करना है इसलिये कालत्रय और लोकत्रय का जानना जरूरी है साथ ही सर्वज्ञ का स्मरण करना भी जरूरी है, इसप्रकार की परिस्थिति बिना सर्वज्ञ के हो नहीं सकती अतः यदि अभाब प्रमाण से सर्वज्ञ का अभाव सिद्ध किया जायगा तो वह अभाव के स्थानपर उसका भाव ही प्रमाणित करेगा।
समाधान-खरविषाण आदि का अभाव कालत्रय और लोकत्रय के लिये किया जाता है । जिसप्रकार यहाँ कालत्रय और लोकत्रय का साधारण ज्ञान होता है उसीप्रकार सर्वज्ञके विषय में भी हो सकता है । जैसे खरविषाण के अभावज्ञान में खरविषाण का स्मरण होता है उसीप्रकार सर्वज्ञ के अभाव ज्ञान में सर्वज्ञ का हो सकता है।
जहाँ प्रत्यक्ष अनुमान आदि किसी प्रमाण से किसी चीज की सत्ता सिद्ध नहीं होती, वहाँ अभाव प्रमाण से उस वस्तु की अभावसिद्धि होती है । जब सर्वज्ञता प्रत्यक्ष का विषय नहीं और अनुमान आदि से भी सिद्ध नहीं हो सकती तब उसका अभाव मान लिया जाता है । ___सर्व शब्द का अर्थ हमें मालूम है, ज्ञ का भी मालूम है, इन दोनों अर्थों के आधार से हम सर्वज्ञ शब्द का अर्थ समझ सकते हैं । अथवा सर्वज्ञवादी सर्वज्ञ का जैसा स्वरूप मानता है उसे समझकर हम सर्व का ज्ञान कर लेते हैं और सर्वज्ञ का खण्डन करते समय उसका स्मरण कर लेते हैं । इसप्रकार सर्वज्ञ न होनेपर भी