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दूसरा युक्याभास जायगा । परन्तु वह विद्वान भी उस स्त्रीके समान मराठी भाषा नहीं जानता । यदि कहा जाय कि दोनों में तरतमता नहीं है, तब तो जगत् के किसी भी प्राणी में तरतमता न बतायी जा सकेगी फिर तरतरता से जो सर्वोत्कृष्टता का अनुमान किया जाता है वह नहीं हो सकेगा। इसलिये यही मानना चाहिये कि दोनों में वह विद्वान अधिक ज्ञानशक्ति वाला है, फिर भी वह उस स्त्री के समान मराठी भापा नहीं जानता । इसी प्रकार जो सब से अधिक ज्ञानी होगा, वह अपने से अल्पज्ञानवाले सब प्राणियों के ज्ञातव्य विषय को नहीं जान सकता; फिर भी वह सब से बड़ा ज्ञानी कहला सकता है।
कल्पित सर्वज्ञतावादियों की भूल यह है कि वे यह समझते हैं कि जो सबसे बड़ा ज्ञानी होमा, वह जो कुछ हम जानते है वह भी जानेगा, जो तुम जानते हो वह भी जानेगा, जो और लोग जानते हैं वह भी जानेगा, इस प्रकार सर्वोत्कृष्ट ज्ञानी को वे सब बातें जानना चमी जिन्हें कोई भी जानता हो, जानता था, जानेगा । उनका यह भम उपर्युक्त (पारंगत विद्वान और अशिक्षित स्त्री के) उदाहरण से निकल जायगा । फिर भी स्पष्टता के लिये कुछ और लिखना अनुचित न होगा ।
झान में जब तरतमता है, तब हम ज्ञानके अंशों की कल्पना करलेते हैं। किसी को एक अंश प्राप्त है, किसी को दो, किसी को पाँच, इसी प्रकार दस, बीस, तीस आदि । जो सब से बड़ा ज्ञानी है, उसके १०० अंश हैं । मानलो १०० अंश से अधिक ज्ञान किसी को नहीं होता । अब एक ऐसे मनुष्य को लीजिये जिसके पास ज्ञान के पाच अंश हैं । उसने एक अंश धर्मविद्यामें लगाया है, एक अंग