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चौथा अध्याय कोई अनुमान बनाब कि सब ठंडे पदार्थ अग्निरूप हैं क्योंकि स्पर्शवान हैं जो स्पर्शवान हैं वे अग्निरूप हैं जैसे अंगार आदि । कोई पानी बर्फ आदि में व्यभिचार बतावे तो उन्हें भी अग्निरूप मानकर पक्षान्तर्गत कर लिया जाय । शीत स्पर्श अग्निरूपता का विरोधी है उसीको अग्निरूप सिद्ध करना जैसे अंधेर है उसी प्रकार सूक्ष्मता अन्तरितता दूरार्थता प्रत्यक्षत्व के विरुद्ध हैं उन्हीं को प्रत्यक्ष सिद्ध करना अंधेर ही है । अरे भाई, कोई चीज अप्रत्यक्ष होती इसीलिये है कि वह सूक्ष्म है अन्तरित है या दूर है । अप्रत्यक्षता के जो कारण हैं उन्हीं में प्रत्यक्षता सिद्ध करने का प्रयत्न करना दुःसाहस ही है।
इस बात को अनुमान के रूप में यों कह सकते हैं-भूक्ष्म अन्तरित और दूर पदार्थ प्रत्यक्ष नहीं हैं क्योंकि इन्द्रियों के साथ उनका योग्य सम्बन्ध नहीं होपाता। जिनका इन्द्रियों के साथ योग्य सम्बन्ध नहीं है उनका प्रत्यक्ष नहीं होता जैसे दीवार आदि की ओट में रखी हुई चीज का चाक्षुष प्रत्यक्ष । जिनका प्रत्यक्ष होता है उनका इन्द्रियों के साथ योग्य सम्बन्ध अवश्य होता है जैसे सामने के मकान वृक्ष- आदि।
प्रश्न-आप का यह आक्षेप इन्द्रिय प्रत्यक्ष को लेकर है पर अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष को मान लेने पर यह आपत्ति नहीं रहती।
उत्तर-अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष की अन्धश्रद्धा पूर्ण कल्पना को कोई सच्चा तार्किक कैसे मान सकता है। अतीन्द्रिय प्रत्यक्षं तो तब सिद्ध हो जब सूक्ष्म अन्तरित दूरार्थों की प्रत्यक्षता सिद्ध हो । अगर