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पहिला युत्याभास सूक्ष्मादि पदार्थों की प्रत्यक्षता सिद्ध करने के लिये अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष मानना पड़े तो अन्योन्याश्रय होने से दोनों ही असिद्ध रहेंगे।
___ यहां व्याप्ति ग्रहण करने के लिये इन्द्रिय प्रत्यक्ष ही उपयोगी है अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष तो स्वयं असिद्ध और अन्धश्रद्धागम्य है वह व्याप्ति ग्रहण क्या करायगा ?
प्रश्न--मन से तो दूर दूर के पदार्थ जान लिये जाते हैं। मनको अर्थ के साथ योग्य सम्बन्ध की ज़रूरत नहीं रहती।
उत्तर-मनका काम बाहिरी पदार्थे का प्रत्यक्ष करना नहीं है उसका काम इन्द्रियों के काम में सहायता पहुँचाना और उनके गृहीत विषय पर विचार करना है । सूक्ष्म अन्तरित और दूर पदार्थो पर वह विचार करता है वह प्रत्यक्ष नहीं है । अगर स्वसंवेदन को मानस प्रत्यक्ष माना जाय तो उसके साथ योग्य सम्बन्ध रहता ही है।
इस प्रकार हर तरह से अनुमेयत्व और प्रत्यक्षत्व की व्याप्ति नहीं बनती।
सर्वज्ञत्व साधक उस अनुमान में एक आपत्ति यह भी है कि अनुमेयत्व तो है हमारी अपेक्षा और प्रत्यक्षत्य है अन्तरित और दूर प्राणियों की अपेक्षा । इससे सर्वज्ञता की सिद्धि कैसे होगी ? ।
सूक्ष्म को तो कोई प्रत्यक्ष कर नहीं सकता क्योंकि बद्ध स्वभाव से विप्रकर्षी है। उसका जैसे आज प्रत्यक्ष नहीं हो सकता वैसे पहिले भी नहीं हो सकता था क्योंकि स्वभाव तो सदा मौजूद रहता है । श्री अकलंक श्री विद्यानन्द आदि आचार्यों ने भी सूक्ष्म