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चौथा अध्याय
प्रश्न- ज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम- विशेष ही प्रत्यक्ष - विशेष में कारण है उसके लिये अर्थ की क्या ज़रूरत ?
उत्तर - क्षयोपशम से हमें एक प्रकार की शक्ति मिलेगी परन्तु शक्ति का जो विशेषरूप में उपयोग है उसका कारण लब्धि नहीं, बाह्यनिमित्त है | ज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम हमें देखने की शक्ति दे सकता है पर हमें खंभा दिखा मकान दिखा इत्यादि विशेषता खंभा और मकान के निमित्त से हुई है । क्षयोपशम - लब्धि--तो सोते में भी थी पर उस समय वह नहीं दिख रहा था फिर दिखने लगा इसका कारण वह पदार्थ है । लब्धि के रहने पर भी अमुक पदार्थ के सामने आने न आने पर प्रत्यक्ष - विशेष निर्भर है इसलिये उपयोग में पदार्थ की कारणता है । आत्मा में अनन्त काल के अनन्त पदार्थों के अलग अलग चिन्ह नहीं बने हैं कि उनके प्रगट होने से उन पदार्थों का प्रत्यक्ष होने लगे । पहिले तो ऐसे चिन्ह असम्भव हैं, आत्मा में इतना स्थान नहीं है कि अनन्त चिन्ह बन सकें, दूसरे चिन्ह प्रगट होने से प्रत्यक्ष होने लगे तो सोने जागने आदिमें भी होना चाहिये पदार्थ के हट जाने पर भी होना चाहिये । मनुष्य का ज्ञान ज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशय से हुआ करे तो मनुष्य हो या न हो जहाँ मनुष्य ज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम हुआ कि मनुष्यज्ञान हुआ । पर अनुभव ऐसा नहीं होता । कैसा भी ज्ञानावरण का क्षयोपशम हो जब तक घड़ा सामने न आयगा न दिखेगा । इसलिये घटज्ञान की विशेषता का कारण घट है । इसीलिये प्रत्यक्ष को अर्थकारणक स्वीकार करना पड़ता है । इसलिये जो अर्थ है ही नहीं उसका