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असत् का प्रत्यक्ष असम्भव
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जानने वाला यदि सर्वज्ञ माना जाय तो इसमें कोई बाधा नहीं है; परन्तु ऐसा सर्वज्ञ तो हरएक आदमी कहला सकता है क्योंकि 'सब जगत् सत् रूप है' इस वाक्य के द्वारा हमें सारे जगत् का ज्ञान होता है । प्रश्न - अतीत में देखी हुई वस्तुओं का हम आँखें बंद करके मानस प्रत्यक्ष कर लेते हैं । इस प्रकार का मानस प्रत्यक्ष यदि अतीत का होता है तो भविष्य का भी हो सकता है; और जब साधारण मनुष्य भी इतना प्रत्यक्ष कर लेता है तब केवली अनंत वस्तुओं का प्रत्यक्ष करें, इसमें क्या आश्चर्य हैं ?
उत्तर - अतीत में जानी हुई वस्तुका जो आँख बंद करके अनुभव होता है, वह वास्तव में प्रत्यक्ष नहीं है, किन्तु परोक्ष है, अतीत का स्मरण मात्र है, जोकि पहिले के किसी प्रत्यक्ष का फल है । अनंत पदार्थों का ऐसा ज्ञान केवली के तभी हो सकता है जब वे उसका पहिले अनुभव कर चुके हों । अनुभूत ज्ञान जो संस्कार छोड़ जाता है उसीके प्रगट होने पर हम आँखें बंद करके ज्ञात वस्तुका प्रत्यक्षवत् दर्शन कर सकते हैं ।
प्रश्न -- ज्ञान में असत् और अननुभूत ( अनुभव में नहीं आये हुए ) पदार्थ को जानने की भी शक्ति है । उदाहरणार्थ, हम चाहें तो गधेके सिर पर सींग की कल्पना कर सकते हैं, यद्यपि गधे के सींग कभी देखा नहीं गया है, फिर भी वह ज्ञान का विषय हो जाता है ।
उत्तर--ऊपर कहा जा चुका है कि वह प्रत्यक्ष नहीं हैं कल्पना है ।
प्रश्न- केवली के भी हम इसी प्रकार का कल्पनारूप ज्ञान मानले तो क्या हानि है ? अन्तर इतना ही है कि हमारी कल्पनाएँ असत्य भी होती हैं जबकि केवली की कल्पनाएँ असत्य नहीं होती ।