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चौथा अध्याय
शब्दों या दो अक्षरों का उच्चारण एक साथ नहीं हुआ, न हो सकता है जब शब्द मात्र और अक्षर मात्र के लिये यह नियम है, तब वह किसी से यह प्रश्न ही कैसे पूछ सकता है कि क्या आप घट के अस्तित्व और नास्तित्व को एक साथ बोल सकते हैं ? यह सन्देह तो तभी हो सकता है जब कि किसी वस्तु का अस्तित्व एक साथ बोला जा सकता हो और किसी का न बोला जा सकता हो । जब शब्द मात्र का युगपत् उच्चारण नहीं होता तब युगपत् उच्चारण के विषय में सन्देह कैसे हो सकता है ? और सन्देह नहीं तो प्रश्न क्या ? और प्रश्न के अभाव में यह भंग कैसे बनेगा ?
इस बात को जरा ऊपर के उदाहरणों में देखिये । पहिले मैंन रोगी का उदाहरण दिया है । कोई रोगी की तबियत पूछे और डॉक्टर को उत्तर देने में अच्छी और बुरी दोनों बातें कहना हो तो वह यही कहेगा कि 'कल से तो अच्छी है परन्तु ऐसी अच्छी नहीं है कि कुछ आशा की जा सके।' इसके बाद कोई ऐसा नहीं पूछता कि ' डॉक्टर साहिब, क्या आप इन दोनों बातों को एक साथ ही बोल सकते हैं ? इस प्रश्न से रोगी की हालत का सम्बन्ध ही क्या ? इस प्रकार का अवक्तव्य भंग व्यर्थ ही हो जाता है । फिर अवक्तव्य के साथ मिले हुए भंगों की तो बात ही क्या है ? न तो इस प्रकार के प्रश्न होते हैं, न इस प्रकारको जिज्ञासा होती है, न ऐसी अवक्तव्यता का वस्तुके धर्म के साथ कोई सम्बन्ध ही है । इससे साफ मालूम होता है कि जैनाचार्यों की इस भूल हुई है।
विषय में बड़ी भारी