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असत् का प्रत्यक्ष असम्भव [४३ प्रश्न-भूत भविष्य को खरविषाण का उदाहरण ठीक नहीं, क्योंकि खर विषाण तो कभी भी संभव नहीं है जब कि भूत भविष्य अपने अपने समय में सम्भव है ।
उत्तर-खरविषाण कभी सम्भव नहीं है तो वर्तमान की तरह उसका भूत भविष्य में प्रत्यक्ष न होगा। पर वर्तमान में भी अप्रत्यक्ष तो भूत भविष्य का भी है और खरविषाण का भी। क्यों कि वर्तमान में दोनों असत् हैं। यही दोनोंकी समानता है जिस से दृष्टान्त दाटीन्त्यभाव बनगया है।
प्रश्न-भूत भविष्य के प्रत्यक्ष में बाधा तो तब आवे जब अर्थ प्रत्यक्ष में कारण हो, पदार्थ को प्रत्यक्ष में कारण मानना ही अनुचित है । क्योंकि बिना पदार्थ के भी प्रत्यक्ष होता है। मरीचिका आदि में जल न होने पर भी जलज्ञान होता है । सत्य स्वान ज्ञान और भावना ज्ञान बिना पदार्थ के होते ही हैं ।
उत्तर-मरीचिका में जल के बिना जलज्ञान होता है पर वह ज्ञान मिथ्या है । वहाँ भी पदार्थ तो कारण है ही, तप्तवालुका पर पड़नेवाली तीक्ष्ण किरणें यह भ्रम पैदा करती हैं। आंखों में विकार होने से भी कुछ का कुछ दिखने लगता है। असत्य ज्ञान में असत्यरूप में पदार्थ कारण होता है जैसा ज्ञान होता है वैसा ही पदार्थ कारण नहीं होता इसीलिये तो वह ज्ञान असत्य कहलाता है ।
____ स्वम भावना आदि ज्ञान तो मनपर पड़े हुए अव्यक्त संस्कारों के फल हैं । पुराने अनुभव, वे व्यक्त हों या अव्यक्त, सूक्ष्म या स्थूल वासना के अनुसार मिश्रित होकर नाना रूपमें दिखते हैं,