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चौथा अन्याय को ही लीजिये । अगर इसके विषय में कोई पूछे कि यह पाप है कि नहीं तो इसके उत्तर भी सात ढंग के होंगे। . १ हिंसा पाप है।
२ स्त्रियों के साथ बलात्कार करने वाले, निरपराध मनुष्यों के प्राण लेनेवाले आदि पापी प्राणियों की हिंसा साप नहीं है।
३ नीति भंग में सहायता पहुँचानेवाली हिंसा पाप है, नहीं तो पाप नहीं है।
४ परिस्थिति का विचार किये बिना, हिंसा पाप है कि नहीं यह नहीं कह सकते।
५ हिंसा पाप है, परन्तु सदा और सर्वत्र के लिये कोई . एक बात नहीं कही जा सकती।
६ आत्मरक्षण आदि के लिये अत्याचारियों के मारने में तो पाप नहीं है, परन्तु सार्वत्रिक और सार्वकालिक दृष्टि से कोई एक बात नहीं कही जा सकती।
७ साधारणतः हिंसा पाप है, परन्तु ऐसे भी अक्सर आते हैं जब हिंसा फाप नहीं होती; फिर भी कोई ऐसी एक बात नहीं कही जा सकती जो सदा सर्वत्र के लिये लागू हो।
जो बात हिंसा-अहिंसा के विषय में है वहीं आचार-शास्त्र के प्रत्येक नियम के विषय में समझना चाहिये । यदि आचार-शास्त्र के प्रत्येक नियम को समभंगी के रूप में दुनियाँ के साहले रखा जाय तो सभी सम्प्रदायों में एकता नजर आने लो। कौनसा नियम किस परिस्थिति में अस्तिरूप है और किसमें नास्तिरूप, इस