Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड
सिद्धान्तज्ञानदीपिका हिन्दी टीका
अथ प्रकृति समुत्कीर्तनाधिकार
। मंगलाचरणम् ॥
पणमिय सिरसा णेमि, गुणरयणविभूसणं महावीरं ।
सम्मत्तरयणणिलयं, पयडिसमुक्तित्तणं वोच्छं ॥१॥ अर्थ – जो सम्यक्त्व आदि गुणरूपी रत्नों के स्थान हैं, गुणरत्नों से विभूषित हैं, मोक्षरूपी महालक्ष्मी को देने वाले हैं, ऐसे नेमिनाथ तीर्थकर देव को मस्तक झुकाकर प्रणाम कर मैं प्रकृति समुत्कीर्तन नामक ग्रन्थ कहता हूँ।
विशेषार्थ - ज्ञानावरणादि मूल भेद तथा उनके उत्तर भेदों सहित समुत्कीर्तन अर्थात् स्वरूप वर्णन है जिसमें उसे प्रकृति समुत्कीर्तन ग्रन्ध कहते हैं। सो क्या करके मैं ऐसे ग्रन्थ को कहूँगा? श्री नेमिनाथ तीर्थंकर को सिर नवाकर नमस्कार करके कहूँगा। कैसे हैं वे नेमिनाथ भगवान ? गुणरूपी रत्न के आभूषण से जो विभूषित हैं, पुन: कैसे हैं ? जो महान् वि-विशिष्ट ई-लक्ष्मी, उसको राति– देते हैं वे महावीर हैं, पुन: कैसे हैं? आत्मस्वरूप की उपलब्धि रूप जो सम्यक्त्व या क्षायिक सम्यक्त्व, वही हुआ रत्न, उसके जो स्थान स्वरूप हैं। इन गुणों से विशिष्ट इष्ट देवता-नमस्कार पूर्वक प्रकृति समुत्कीर्तन ग्रन्थ को कहने की आचार्य ने प्रतिज्ञा की है। ५. पयडि समुचित्तणं - पयडिसरूवणिरूव (ध. पु. ६ पृ. ५ सू. ३ की टोका)