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१
चौतीस स्थान दर्शन
२
चक्षु पचनु
१६ भव्य
१७ सम्यक्त्व
१- संजी
१५ ला
कोष्टक १ श्रमण पर्यात यवस्था में
भब्य ही
४७ प्रौदारिक मिश्र वेकयक मिश्र कारमाण ये
तीन काय योग
1
घटाकर
मामादन
२ | संभी मसंजी | संशी ही
( ३५ ) कोष्टक नम्बर २
३-६-१-३-१ के भंग तीन का भंग नरकगति में कृष्ण लोन कापान ६ का भंग नियंच मनुध्व गति में
१ का भंग भवनत्रक देवों में गीत लेख्या १ का मंग कल्पवासी
देवों में पीन पदम
शुक्ल
१ का मंगलपातीत ग्रहमन्द्रो में शुक्ल लेश्या १
१
को १ दर्शन
कोई १ लेग्या अपने अपने स्थान प्रमाण विशेष विगम मराठी गोमट सार कर्म का प २४२ से २६६ तक देखो
पर्यात अवस्था में
:
सामदन गुण स्थान
৬
३-१ • सासादनी मरकर
नरक में नहीं जाता
का भंग तिर्वच गति में कृष्ण नील कामोत
६ का मंग मनुष गति में सर्व लेण्या
३ का भंग भवनत्रक देवों में कृपण नील कापोत का मंग कल्पवानी देवों में पीत पदम और शुक्ल
१ का भंगतीत सड़क में म लिश्या १ ३ का भंग एकेन्द्री से
चन्द्र नियंचों में ॠण तीन कापोत १ का भंग यसंज्ञी पंचेन्द्री तियंचों में पीन लेश्या १
१
०-३-६-६-६-१ के संग कोई १ व्या कोठा नं ०७ में मे
एकेन्द्र से प्रसंज्ञी पंचेन्द्रो
तक अजी संज्ञी पंचेन्द्री संजी
८
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कोई १ दर्शन
कोई अवस्था