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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०७ सू० २ उपध्यादिस्वरूपनिरूपणम् ९५ न्द्रियाणां कतिविध उपधिस्तत्राह-एगिदियाण' इत्यादि । 'एगिदियाणं दुविहे उवही पन्नत्ते' एकेन्द्रियाणां द्विविध उपधिः प्रज्ञप्तः 'तं जहा' तयथा 'कम्मो. वही य सरीरोदही य' कर्मोपधिश्च शरीरोपधिश्च कर्मशरीरोभयरूप एव उपधिरेकेन्द्रिजीवानाम् तदन्येषां तु त्रिविधोऽपीति । 'कइविहे णं भंते ! उबही पन्नत्ते' कतिविधः खलु भदन्त ! उपधिः प्रज्ञप्तः इति प्रश्ना, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'तिविहे उवही पन्नत्ते विविध उपधिः प्रज्ञप्तः 'त जहा' तद्यथा 'सचित्त अचित्ते मीसए' सवित्तः अचित्तः, मिश्रकः 'एवं नेरडयाणं वि एवं नैरयिकाणामपि आलापप्रकारश्चेत्थम् 'नेरहयाणं भंते ! काबिहे उबही पन्नत्ते ? गोयमा ! तिविहे त जहा सचित्ते अचित्ते मीसए' नैरयिकाणां खलु दो दी उपधि होती हैं । जैसा कि 'एमिंदियाणं दुविहे उचही पन्नत्ते इल सूत्र बारा कहा गया है। अब गौतम पुनः उपधि के प्रकार के विषय में प्रभु से पूछते हैं-'कविहे गं भंते ! उवहीं पन्नत्ते' हे भदन्त ! उपधि कितने प्रकार की कही गई है। इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! उपधि पुनः प्रकारान्तर ले ३ प्रकार की कही गई है । 'तं जहा सचित्त' एक चित्त उपधि, अचित्त उपधि और मिश्र उपधि 'नेरझ्याणं भंते !०' हे भदन्त ! इन ३प्रकार की उपधियों में से नैरयिकों में कितनी उपधियां होती हैं ? तो इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'एवं नेरझ्याणं वि' हे गौतम ! नैरपिकों में सचित्त, अचित्त और मित्र ये तीनों ही प्रकार की उपधियां होती हैं। यहां आलाए प्रकार ऐसा है'नेरइयाणं भंते ! काविहे उवही पन्नत्ते गोयमा ! तिविहे तं जहा તેઓને શરીરે પધિ અને કર્મોપધિ એ બે જ ઉપધિ હોય છે. જેમ કે"एगिदियाणं दुविहे उवही पन्नत्ते" मा सूत्रांशी संवामा माव्यु छ. शथा गौतम स्वामी प्रभुन धिना प्रारीना विषयमा पूछे छे ४-"कइविहे गं भंते ! वही०" मापन पछि सा ४२नी अवाम मावी छ ! तना उत्तरमा प्रभु ४ छ "गोयमा!" गीतम! तरथी पधि त्रए प्रा२नी अपामा मावी छ. "त जहा मचित्ते०" सथित, पधि मयित्त पधि मन मिश्र पधि. "नेरइयाणं भंते !" उ भगवान् मा ત્રણ પ્રકારની ઉપધિ પૈકી નૈરયિક જીને કેટલી ઉપધિ હોય છે આ मा प्रश्नमा उत्तरमा प्रभु ४३ छ है-"एवं नेरइयाण विहे गौतम! नैयि જમાં સચિત્ત –અચિત્ત, અને મિત્ર એ ત્રણે પ્રકારની ઉપધિ હોય છે. तेना मालापन ४२ मा प्रमाणे छे.-"नेरइयाणं भते ! काविहे उवही