________________
૪૮૯
भगवती सूत्रे
'ठिई जहा ' इत्यादि, 'ठिई जहा पनवणार' स्थितिर्यथा प्रज्ञापनायाम् - प्रज्ञापनासूत्रे पण्ठे स्थितिपदे यथास्थितिः प्रतिपादिता तथैव इहापि ज्ञातव्या तत्र त्रीन्द्रि याणाम् उत्कृष्टा एकोनपञ्चाशत् रात्रिंदिवचतुरिन्द्रियाणामुत्कृष्टा स्थितिः पण्मासा जघन्या स्थितिः उभयेषामपि अन्तर्मुहूर्त्तमेवेति भावः । 'सिय भंते ' स्याद् भदन्त ! ' जाव चत्तारि पंच पंचिंदिया' यावत्पदेन द्वौ वा त्रयोवेत्यनयोः संग्रहः, 'एगयओ' एकतः संभूयेत्यर्थः 'साहारणं ० ' द्वौ वा त्रयो वा चत्वारो वा एकत्र मिलित्वा साधारणं शरीरं बध्नन्ति एकतः साधारणं शरीरं बद्ध्वा ततः पश्चात् आहरन्ति वा परिणमयन्ति वा शरीरं वा वध्नन्ति किम् ? इति प्रश्नः, भग
अतिदेश से कही गई है यही बात 'ठिई जहा पनवणाए' इस पद द्वारा प्रकट की गई है - प्रज्ञापना सूत्र का स्थितिपद चौथा पद है सो उसमें जैसी स्थिति तेहन्द्रिय और चौइन्द्रिय जीवों की प्रकट की गई है वैसी ही वह यहां पर भी कह लेनी चाहिये इनमें तेइन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट स्थिति ४९ रात दिन तक की है और चौहन्द्रिय जीवों की छह मास तक की है तथा जघन्य स्थिति इन दोनों की एक अन्तर्मुहूर्त की है।
अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'सिय भंते ! जाव चत्तारि, पंच पंचिदिया एगयओ साहारणं०' हे भदन्त ! क्या यह बात संभव हो सकती है कि यावत्-दो तीन एवं चार और पांच पञ्चेन्द्रिय जीव मिलकर एक शरीर का - साधारण शरीर का बन्ध करते हैं ? साधारण शरीर का बन्ध करके उसके बाद आहार करते हैं ? और आहृत पुदलों को परिणामाते हैं ? फिर विशिष्ट शरीर का बंध करते हैं ? इसके उत्तर
छे. ते वात "ठिई जहा पन्नत्रणाएं' मा पहथी प्रगट उरेल छे. अज्ञायनानु ૬ છ ુ' સ્થિતિપદ છે. તેમાં તેન્દ્રિય અને ચાર ઇન્દ્રિયવાળા જીવાની જેવી સ્થિતિ ખતાવેલ છે. એજ રીતની સ્થિતિ અહિયાં પણુ સમજી લેવી. તેમાં ત્રણ ઈંદ્રિયવાળા જીવાની ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ ૪૯ એગણપચાસ રાત દિવસ સુધીની છે. અને ચાર ઈંદ્રિયવાળા જીવાની સ્થિતિ છ મહિના સુધીની છે. આ બન્નેની જઘન્ય સ્થિતિ એક અન્તર્મુહૂત'ની છે.
हवे गौतम स्वाभी अलुने येवु छे छे - सिय भंते ! जाव चत्तारि पंचपंचि दिया एगयओ साहारणं' हे लगवन् से वात संभवी शडे छे हैયાવત્ છે ત્રણ અને ચાર તથા પાંચ પચેન્દ્રિય જીવેા મળીને એક સાધારણ શરીરના અધ કરે છે? અને સાધારણ શરીરના અ′ધ કહીને તે પછી આહાર કરે છે? અને આહાર કરેલા પુદ્ગલાને પરિણમવે છે? તેના ઉત્તરમાં