Book Title: Bhagwati Sutra Part 13
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 933
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० २.५ १०९ अनन्तप्रदेशिके सप्ताप्टस्पर्शगतभङ्गनि० १०५ लहुएण वि समं चउसहि भंगा कायद्या' सौ लघुको देशः कर्कशो देशो मृदुको देशः शीतो देश उष्णो देशः स्निग्धो देशो रूसा, एवं लघुकेनापि समं चतुःपष्टि अंडा कर्तव्याः। 'सव्वे सीए देसे कपडे देसे मउए देसे गरुए देसे लहुए देसे निद्धे देसे लुक्खे' रानः शीतो देशः कःशो देशो मृदुको देशो गुरुको देशो लघुको देशः स्निग्धो देशो रूक्षा, एवं शीतेनापि समं चउहि भंगा कायवा' एवं कर्कशादिवत् शीतेनापि समं चतु पष्टिर्भङ्गाः कर्तव्याः । 'सव्वे उसिणे देसे कक्खडे देसे उए देसे गरुए देसे लहुए देसे निद्धे देसे लुक्खे' सर्व उष्णो में रुक्ष स्पर्शाला हो सकता है १' ऐसा यह प्रथम भंग 'सच्चे सीए, देले करखडे, देसे मउए, देले गरुए, देने लहुए, देसे निद्ध, देसे लुक्खे' इस प्रकार के सर्वशीन प्रधानक कथन में भी ६४ भंग होते हैं, उन भंगों में से-'सर्वाश में वह शीत, एकदेश में कर्कश, एकदेश में मृदु, एकदेश में गुरु, एकदेश में लघु, एफदेश में स्निग्ध और एकदेश में रूक्षो सकता है। ऐसा यह प्रथम भंग है चाची के भंग अपने आप बना लेना चाहिये 'सव्वे उसिणे, देसे कक्खडे, देखें मउए, देसे गरुए, देसे लहुप, देसे निद्धे, देसे लरखे' इस प्रकार के सर्व उष्ण प्रधानक कथन में भी ६४ भंग कर छेना चाहिये उन अंगों એકદેશમાં રૂક્ષ સ્પર્શવાળ હોય છે, આ રીતના લઘુ પદ પ્રધાનતાવાળા પણ ६४ यास मी थाय छ तेना पडa at A प्रमाणे छ 'सव्वे सीए देसे कक्खडे देसे मउए देसे गरुए देसे लहए, देसे निद्धे देसे लुक्खे१ ते પિતાના સર્વાશથી શીત એકદેશમાં કર્કશ એકદેશમાં મૃદુ એકદેશમાં ગુરૂ એકદેશમાં લઘુ, એકદેશમાં સ્નિગ્ધ અને દેશમાં રૂક્ષ સ્પર્શવાળ હોય છે. આ પહેલો ભંગ છે બાકીના પંદર ૧૫ ભંગ સ્વયં સમજી લેવા. હવે SY पहनी प्रधानताatn गाना प्रा२ मतावामां आवे छे. 'सव्वे उसिणे देसे कक्खडे देसे मए देसे गरुए देसे लहुए देसे निद्धे देसे लुक्खे' ते પિતાના સર્વાશથી ઉષ્ય એકદેશમાં કર્કશ એકદેશમાં મૃદુ એકદેશમાં ગુરૂ એકદેશમાં લઘુ એકદેશમાં સ્નિગ્ધ અને એકદેશમાં રૂક્ષ સ્પર્શવાળા હોય છે. આઉષ્ણ પદની પ્રધ'તાવાળ પહેલે ભંગ છે. બાકીના ઉષ્ણ પદની પ્રધા નતાવાળા ૬૪ ચોસઠ ભાગે પૂર્વોક્ત પદ્ધતિ પ્રમાણે સમજી લેવા. આજ પ્રમાણે સ્નિગ્ધ સ્પર્શને પ્રધાન બનાવીને પણ ૬૪ ચેસઠ ભંગ થાય છે. તેને પ્રથમ An I प्रमाणे छ- 'सम्वे निद्धे देसे खडे देसे मउए देसे गरुए देसे लहुए देसे सीए देसे उसिणे तपाताना सशिथी नि देशमा ४२ मे भ ११४

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