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भगवतीस्त्रे देशः कर्कशी देशो मृदुको देशो गुरुको देशो लघुको देशः स्निग्धो देशो रूक्षा, 'एवं उसिणेण वि समं चउसहि भंगा कायवा' एचYष्णेनापि समं चतुःषष्टिभङ्गा कर्तव्याः । 'सच्चे निद्ध देसे कक्खडे देसे मउए देसे गरुए देसे लहए देसे सीए देसे उसिणे' सर्वः स्निग्धो देशः द के शो देशो मृदुको देशो गुरुको देशो लघुको देशः शीतो देश उष्णः, 'एवं निःण वि सम चउसहि भंगा कायया' एवं स्निग्धेनापि सम चतुःषष्टिभङ्गाः कर्त्तव्याः । 'सव्वे सुक्खे देसे कक्खडे देसे मउए देसे गरुए देसे लहुए देसे सीए देसे उसिणे' सों रूक्षो देशः कर्कशो देशो मृदुको देशो गुरुको देशो लघुको देशः शीतो देश उष्णः, एवं लुक्खेण चि समं चउसहि भंगा कायबा' एवं रूक्षेणापि समं चतुःषष्टिभङ्गाः कर्तव्याः, 'जाव सव्वे लुक्खे देसा कक्खडा देसा मउया देसा गुरुया देसा में से-वह 'सर्वाश में उष्ण, एकदेश मे कर्कश, एकदेश में मृत, एकदेश में गुरु, एकदेश में लघु, एकदेश में स्निग्ध और एकदेश में रूक्ष स्पर्शवाला हो सकता है १' ऐसा यह भंग प्रथम भंग है इसी प्रकार से ६४ भंग सर्वस्निग्ध प्रधानक कथन में भी कर लेना चाहिये यही बाल 'सम्वे निळे, देसे कक्खडे, देले मउए, देले गरुए, देसे लहुए, देसे सीए, देसे उमिणे' इस सूत्रपाठ द्वारा प्रकाशित की गई है, सर्व स्निग्ध प्रधानक कथन में यह प्रथम भंग है 'सब्ने लुक्खे, देसे कक्खडे देसे मउए, देल गहए, देसे लहुए, देले सीए, देसे उलिणे' इस प्रकार के कथन में भी ६४ भंग होते हैं, उन भंगों में से यह-लाश में वह रूक्ष, एकदेश में कर्कश, एकदेश में प्नु, एकदेश में गुरु, एकदेश में लघु, एकदेश में शीत, और एकदेश में उष्ण हो सकता है। प्रथम भंग है, अवशिष्ट भंग अपने आप 'जाव सब्वे लुक्खे, देसा દેશમાં મૃદુ એકદેશમાં ગુરૂ એકદેશમાં લઘુ એકદેશમાં શીત અને એકદેશમાં ઉષ્ણુ સ્પર્શવાળ હોય છે. સ્નિગ્ધ પદની પ્રધાનતાવાળો આ પહેલો ભંગ છે. તેના પણ ૬૪ અંગે પૂર્વોક્ત પદ્ધતિ પ્રમાણે બનાવી લેવા. આજ રીતે રૂક્ષ પદની પ્રધાનતામાં પણ ૬૪ ચોસઠ ભંગ થાય છે. તેને પહેલે ભંગ આ प्रभारी छ.-'सव्वे लुक्खे देसे कक्खडे देसे मउए देसे गरुए देसे लहुए देसे सीए देसे उसिणे१' ते पाताना सर्वाशथी ३क्ष महेशमा शो देशमा મૃદુ એકદેશમાં ગુરૂ એકદેશમાં લઘુ એકદેશમાં શીત અને એકદેશમાં ઉષ્ણ સ્પર્શવાળ હોય છે. આ રક્ષ સ્પર્શની પ્રધાનતાવાળો પહેલો ભંગ છે. બાકીના ભંગે સ્વયં ઈલા ભંગ સુધી સમજી લેવા, તેને છેલ્લે સંગ આ