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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ.५ सू०९ अनन्तप्रदेशिके सप्ताप्टस्पर्शगतभनि० ९२५ सर्वम् , 'एवं गरुएणं एगलएणं लहुएणं पुहुत्तएणं' इति वाक्येन दर्शितम् , एकत्रचनान्तेन गुरुकेन लघु केन बहुवचनान्तेन लघुकेनेत्यर्थः । एवं कर्कशपदेन एकत्र चनान्तेन गुरुपदेन बहुवचनान्तेन एते एव पुनः पोडशभङ्गान् लभन्ते इति दर्शयन्नाह-'देसे कक्खढे देसे मउए देसा गरुया' इत्यादि, 'देसे कक्खढे देसे मउए देसा गरुया देसे लहुए देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे४, भी ४ भंग हुए हैं यहाँ लघुद को बहुवचनान्त किया गया है तथा लघुपद और शीतपद को बहुवचनान्त करके ४ भंग और धनते हैं, इसी प्रकार से लघु, और उष्णपद को बहुवचनान्त करके ४ भंग बनाये जाते हैं इसी प्रकार से बहुवचनान्त करके लघु, शीत, और उष्णपदों के द्वारा भी ४ भंग बनाये जाते हैं यही बात 'एवं गरुएणं एगत्तएणं लहुएणं पुष्टुत्तएण' इस वाक्य से प्रकट की गई है । अर्थात् गुरुपद को एकवचन में और लघुपद को बहुवचन में रखकर और भी १६ भङ्ग इसी प्रकार से बनते हैं। तात्पर्य कहने का यह है कि यहां पर जितने भी ये चतुष्क प्रकट किये गये हैं उन सबके १६-१६ भंग बनते हैं। ___अघ यह प्रकट किया जाता है कि जप कर्कशपद को एकवचनान्त
और गुरुपद को बहुवचनान्त किया जाता है तब ये ही भग और १६ भङ्गरूप में परिणत हो जाते हैं जैसे-'देसे कक्खडे, देसे मउए, देसा गल्या, देसे लहुए, देसे सीए, देखे उखिणे, देसे निद्धे, देसे लुक्खे ४' ૪ ચાર ભાગે થયા છે. આમાં લઘુ પદને બહુવચનથી જેલ છે. તથા લઘુ પદ અને શીત પદને બહુવચનથી યેજીને ૪ ચાર ભગો બનાવાય છે. એજ રીતે લઘુ શીત ઉણપને બહુવચનાન્ત કરીને પણ ૪ ચાર ભંગ બનાવાય છે से वात 'एवं गएणं एगत्तएणं लहुए गं पुहत्तएणं' मा सूत्र५४थी ताव છે. અર્થાત ગુરૂ પદને એકવચનમાં અને લઘુ વિગેરે પદેને બહુવચનમાં રાખીને પણ બીજા ૧૬ સોળ ભાગે થાય છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કેઆ પ્રકરણમાં જેટલી ચતુર્ભગીઓ બતાવવામાં આવી છે તે તમામના ૧૬૧૬ સોળ સોળ ભંગ થાય છે.
હવે એ બતાવવામાં આવે છે કે-જ્યારે કર્કશ પદને એકવચન અને ગુરૂ પદને બહુવચનવાળું બનાવવામાં આવે છે. ત્યારે આજ ભંગ ૧૬ સોળ
३२ मनी लय छे. तसा प्रभारी छ-'देसे कक्खडे देसे मउए देसा गरुया ऐसे लहुए देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लुखे४' मा शतना