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भगवतीसूत्रे
रेण सप्तमदेशिकमकरणेsपि स्पर्शभङ्गा ज्ञातव्या इति, तथाहि यदि स्पर्शद्वयवान् स्यात् सप्तमदेशिकः स्कन्धस्तदा चतुष्यदेशिकस्कन्धवदेव अत्रापि चत्वारो भङ्गाः, 'सिय सीए य निद्धे य १, सिय सीए य लुक्खे य २, सिय उसिणे य निद्रे य ३, सिय उसिणे य लुक्खे य ४' स्यात् शीतश्च स्निग्धश्चेति प्रथमः १, स्यात् शीतच रूक्षत्रेति द्वितीय: २, स्यात् उष्णश्च स्निग्धश्चेति तृतीयः ३, स्यात् उष्णश्च रूक्षश्चेति चतुर्थः ४, एवं चत्वारो भगाः द्विस्पर्शविषये सप्तमदेशिक स्कन्धस्य भवन्तीति । यदि त्रिस्पर्शः सप्तप्रदेशिकः स्कन्धस्तदा 'सच्चे सीए देसे निद्धे देसे बखे य १, सच्चे सीए देसे निद्धे देसा लुक्खा २, सव्वे सीए देसा जानना चाहिये, जैसे यदि यह सप्तप्रदेशिक स्कन्धं दो स्पर्शो वाला होता है तो वह चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध की तरह ही इन चार भंगों वाला होता है 'सिय सीए य निद्धे य १, सिय सीए य लुक्खे प २, सिय उसिणे य, निद्वेय ३, लिय सिणे य लुक्खे य ४' इनका तात्पर्य ऐसा है कि वह सप्तप्रदेशिक स्कन्ध कदाचित् शीत स्पर्शवाला और स्निग्ध स्पर्शवाला हो सकता है १ कदाचित् वह शीत स्पर्शवाला और रूक्ष स्पर्शवाला हो सकता है २, कदांचित् वह उष्णस्पर्शवला और स्निग्ध स्पर्शवाला हो सकता है ३, कदाचित् वह उष्ण स्पर्शवाला और रूक्ष स्पर्शवाला हो सकता है ४ इस प्रकार के ये ४ भंग द्विस्पर्श के विषय में सप्तप्रदेशिक स्कन्ध के होते हैं ।
यदि वह सप्तमदेशिक स्कन्ध तीन : स्पर्शो वाला होता है - तो इस सामान्य कथन में वह - 'सव्वे सीए देसे निद्धे, देसे लुक्खे य १, सव्वे
વાળા સ્કંધ જો એ સ્પવાળી હાય તા તે ચાર પ્રદેશી સ્કંધ પ્રમાણે આ नीथे मतावेव लौंगे। अमाशे यार लोगों बाणो थाय छे, 'सिय सियए निद्धे य' १ કેાઈ વાર તે ઠંડા સ્પશ વાળો હાય છે. અને કેાઈવાર સ્નિગ્ધ-ચિકણા-સ્પશ વાળા होय छे १ 'सिय सिए-य लुक्खे य२' अर्धवार ते उडा स्पर्शवाणी होय छे भने अर्धवार ३क्ष स्पर्श वाणी पशु होध शडे छे. 'सिय उखिणे यं निद्धे य३' अर्धवार ते पशु स्पर्शवाणो भने स्निग्ध-शिष्या स्पर्शवाणा होय छे उ 'सिय उसिणे य लुक्खे य४' अर्धवार-ते उष्णु स्पर्शवाणी मने ३क्ष स्पर्शवाणा होय है ४ मा रीते આ ચાર ભગા એ સ્પર્શના સમધમા સાત પ્રદેશવાળા ધના થાય છે. જે તે સાત પ્રદેશવાળા સ્કંધ ત્રણ સ્પર્શે વાળા ઢાયતા આ સામાન્ય अथनभां ते या प्रभाये त्रयु - स्पर्शोवाजो | शडे छे. 'सव्वे' सीए देखे 'निद्धे, देसे - लुक्खे १' ते सर्वांशमां इडा स्पर्श वाणी होय. छे. मे४ देशमां
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