Book Title: Bhagwati Sutra Part 13
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 859
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ०५ सू०८ अनन्तप्रदेशिकपुद्गलगतवर्णादिनि० ८३१ परिणतः, चादरत्वं-स्थूलत्वं ततश्च स्थूलता प्राप्त इत्यर्थः 'अणंतपएसिए खंधे' अनन्तमदेशिकः स्कन्धा-अनन्ताः प्रदेशा अवयवतया विधन्ते यस्यावयविनः सोऽनन्तप्रदेशिकः एतादृशः स्कन्धः स्थूलावयवी सः 'कइबन्ने' कतिवर्णः कतिगन्धः कविरसः कतिस्पर्शः स्थूरावयविनि कियन्तो वर्णगन्धरसस्पर्शाः विद्यन्ते इति प्रश्नः, 'एवं जहा अहारसमसए नाव सिय अट्ठफासे पन्नत्ते' एवं यथा अष्टादशेशते यावत् स्यात् अष्टस्पर्शः प्रज्ञप्तः तथाहि-तत्रत्यं प्रकरणम् , भगवानाह-हे गौतम ! स्यादेकवर्णों यावत् पश्चवर्णः, स्यादेकगन्धः स्याद् द्विगन्धः, स्यादेक अणतपएसिए खंधे' हे भदन्त ! जो अनन्त प्रदेशिक पुद्गल स्कन्ध चादर रूप परिणाम से परिणत होता है वह कितने वर्णों वाला, कितनी गंधों वाला, कितने रसों वाला, और कितने सौँ वाला होता है ? पूछने का तात्पर्य ऐसा है कि जो अनन्त प्रदेशों वाला पुग़ल स्कन्ध-अनन्त प्रदेश अवघवरूप से जिसमें विद्यमान होते हैं-अनन्त पुद्गल परमाणुओं के संयोग से जो जन्य होता है-ऐसा स्थूलावयची पुद्गल कितने वर्णादि वाला होता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'एवं जहा अट्ठारसमसए जाव सिय अट्ठफासे पन्नते' हे गौतम ! जिस प्रकार से अठारहवें शतक में 'यावत् वह कदाचित् आठ रुपों वाला होता है इस पाठ तक कहा गया है-वैसा ही कथन यहां पर भी कर लेना चाहिये, उत्तररूप में वहां का प्रकरण इस प्रकार से है-हे गौतम ! वह कदाचित् एक 'बायरपरिणए गं भंते! अणंतपएसिए खंधे पुच्छा' 3 भगवन् रे मनन्तપ્રદેશવાળો પુલ ધ બ દર રૂપ પરિણામથી પરિણામવાળે થાય છે. તે કેટલા વર્ષોવાળે હેય છે? કેટલા ગધેવાળો હોય છે? કેટલા સેવાળે હોય છે? અને કેટલા સ્પર્શીવાળા હોય છે ? પૂછવાને હેતુ એ છે કેઅનંત પ્રદેશવાળો પુદ્ગલ સ્કંધ અનન્ત પ્રદેશ રૂપ અવયથી જેમાં રહેલા હેય છે-અનન્ત પુદ્ગલ પરમાણુઓના સગથી થવાવાળો હોય છે-એ સ્થૂલ અવયવવાળો પુદ્ગલ કેટલા વર્ષોવાળો હોય છે? કેટલા ગધેવાળો હોય છે? કેટલા રસવાળો હોય છે. અને કેટલા સ્પર્શેવાળો હોય છે? આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रभु ४९ छ 8-'एव' जहा अद्वारसमसए जाव सिय अटुफासे पण्णत्ते' હે ગૌતમ ! અઢારમાં શતકમાં જે પ્રમાણે યાવત્ તે કઈવાર આઠ સ્પશે વાળો હોય છે. આ પાઠ સુધીમાં કહેવામાં આવ્યું છે. તે જ પ્રમાણેનું કથન અહિયાં પણ સમજવું.

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