Book Title: Bhagwati Sutra Part 13
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 881
________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०२० उ०५ सू०८ अनन्तप्रदेशिकपुद्गलगतवर्णादिनि०.८५३ बत्तीस भंगा एते द्वानिशद्भङ्गा उपर्युक्ता भवन्तीति; एपा द्वितीया द्वात्रिंशिका २।। 'सव्वे कक्खडे सव्वे सीए सव्वे निद्धे देसे गरुए देसे लहुए' सर्वः कर्कश सर्वः शीतः सर्वः स्निग्धः देशो गुरुको देशो लघुका, 'एस्थवि वत्तीसं भंगा' अत्रापि द्वात्रिंशङ्गा भवन्तीति, कर्कशशीतस्निग्धेन सह गुरुकलघुकयोरेर ताने कत्वाभ्यां चत्वारो भङ्गा ४, कशशीवरूण सह गुरुकलघुरुयोरेकत्वाने कत्वाम्यां पुनश्चवारो भङ्गाः ४ । एवम् शीतस्थाने 'उसिणे' दरवा कर्कशोणस्निग्धेन सह गुरुकलघुरुयोरेकत्तानेकत्वाभ्यां पुनश्चत्व.र. ४ । कर्कशीष्ण. सोलह भंग किये गए हैं उसी प्रकार से सुद्धक के साथ भी १६ भग कर लेना चाहिये, 'एए बत्तीसं भंगा' इस प्रकार से थे ३२ भंग है, यह द्वितीय द्वात्रिंशतिका है तृतीय द्वात्रिंशतिका इस प्रकार से है'सन्चे कक्खडे, सम्बे सीए, सच्चे निद्धे, देले गए, देसे लहुए' यह इसका प्रथम भंग है, इसके अनुसार वह सर्वा श में कर्कश सर्वाश में शीत, सर्वाश में स्निग्ध, एकदेश में गुरु और एकादेश में लघु स्पर्शवाला हो सकता है १, यहां पर कर्कश, शीन, स्निग्ध के साथ गुरु और लघु इन्हें एकत्व और अनेकत्व में रखने से ४ भंग होते हैं, कर्कश, शीत, रूक्ष के साथ गुरु और लघु पदों के एकत्व और अनेकत्व में रखने से ४ भंग होते हैं, इसी प्रकार से शीत के स्थान में 'उसिणे' पद का प्रयोग करके कर्कश, उषम, स्निग्ध के साथ गुरु लघुपद में एकाच और अनेकत्व करके ४ भंग होते हैं, कर्कश, उष्ण, रूक्ष के साथ २५शया साये पक्ष १६ सण सो सभा . मे २२ 'एए बतीस भंगा' આ રીતે આ બીજી બત્રીસીના બત્રીસ અંગે કહ્યા છે. આ રીતે આ બીજી मन्त्रीसी छे. वील त्रीसी मतापामा मावे छ. २ मा प्रभारी -'सम्वे कक्खडे सव्वे सीप, सम्वे निद्धे, देसे गरुए देखे लहुए१ ते पाताना सशिथी કર્કશ સ્પર્શવાળો સર્વાશથી ઠંડા સ્પર્શવ ળો સશથી સ્નિગ્ધ સ્પશવાળા એક દેશમાં ગુરૂ સ્પર્શવા અને એક દેશમાં લઘુ સ્પર્શવાળે હેય છે. અહિયાં કર્કશ, શીત અને સ્નિગ્ય સ્પર્શની સાથે ગુરૂ અને લઘુ સ્પર્શને રાખીને તેના એકપણ અને અનેકપણથી ૪ ચાર ભંગ થાય છે 1 કર્કશ, શીત અને રૂક્ષ સ્પર્શની સાથે ગુરૂ અને લઘુ સ્પર્શ સંબંધી પદે અને તેના એમ્પણ અને અનેકપણાથી પણ ૪ ચાર ભાગે થાય છે ૨ એજ રીતે 'शीत' पनि स्थाने 'उसिणे' पहनी प्रये ॥ श श, GY भने સ્નિગ્ધ સ્પર્શની સાથે ગુરુ લઘુ પદમાં એકપણું અને અનેક પણ કરવાથી પણ

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