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भगवतीसूत्र अन्यतमवर्णवान् भवति परमाणुरिति भावः । 'जइ एगगंधे सिय सुन्मिगंधे सिय दुभिगधे' यदि एकगन्धः तदा स्यात्-कदाचित् सुरभिगन्धः, स्यात्-कदाचित् दुरभिगन्धः । 'जइ एगरसे सिय तिते सिय कडए' यदि एकरसः नदा स्यात्कदाचित् तिक्तः, स्यात्-कदाचित् कटु का 'सिय कसाए' स्यात् कपायः 'सिय अंविले' स्यादम्लः 'सिय महुरे' स्याद् मधुरः तिक्तादिषु पश्चरसेपु एकतमरस एव भवति परमाणुरिति । 'जइ दुफासे' यदि द्विस्पर्शः तदा 'सिय सीए य निद्धे य' स्यात शीतश्च स्निग्धश्च 'सिय सीए य लुक्खे य' स्यात शीतश्व रुक्षश्च 'सिय उसिणे य निढे य' स्यादुष्णश्च स्निग्धश्च, 'लिय उसिणे य लुक्खे य' स्यादुष्णश्च इसी प्रकार का कथन आगे के गुणों के होने के विषय में भी जानना चाहिये 'जह एगगंधे, सिय सुभिगंधे, सिय दुन्भिगंधे' यदि वह एक गन्धगुणवाला कहा जाता है तो दो गन्धों में से या तो वह सुरभिगंध वाला हो सकता है या दुरभिगन्ध वाला हो सकता है। 'जह एगरसे, सिय तित्ते सिय कडुए, सिय कसाए, लिय अंबिले, सिय महुरे' यदि उसे जय एक रसगुण वाला कहा जाता हैं तो वह पांचरसों में से कोई न कोई एक रस वाला हो सकता है कदाचित् वह तिक्तरस वाला भी हो सकता है, कदाचित् वह कटुक रसवाला भी हो सकता है कदाचित् वह कषाय रसवाला भी हो सकता है कदाचित् वह अम्लएसवाला भी हो सकता है तथा कदाचित् वह मधुररस वाला भी हो सकता है इसी प्रकार से 'जह दुफासे सिय लीए य निद्धे च यदि वह दो स्पर्शों वाला है तो वह कदाचित् शीतस्पर्श और स्निग्धस्पर्शवाला भी हो सकता है और कदाचित् वह 'सिय सीए य लुक्खे य' शीतस्पर्श और
વર્ણ તેમાં અવશ્ય હોય છે જ, આજ પ્રમાણેનું કથન આગળના ગુણેના હોવાના समयमा पशु सभा'. 'जइ एग गंधे, सिय सुभिगधे सिय दुभिगंधे' न त भ3 ગધ ગુંણવાળા છે, તો બે ગધે પૈકી સુગંધ ગુણવાળા હોઈ શકે છે, અથવા તે दुधवा / श छे. 'जइ एगरसे सिय तित्ते सिय कडुए सिय कमाए, सिय अबिले, सिय महुरे,' तने मे २स शुशवाय अपामा मावे तात પાંચ રસો પૈકી કઈને કઈ એક રસવાળા હોઈ શકે છે. કદાચિત તે તીખા રસવાળા પણ હોઈ શકે છે. કદાચિત તે કડવા રસવાળા પણ હોઈ શકે છે.
थित् ते तु। २सवा ५ श छे. 'जइ दुफासे सिय सीए य निद्धे य त मे २५शा हाय त यिद ते शीत २५ मा भने स्निग्ध १५ वा छ. हाय ते 'सिय सीए य लुक्खे य' ४१