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' भगवतीस्त्र
नीलश्च लोहितोश्च हारिद्रश्चेति दशमः १०, 'सिय कालगा य, नीलगा य लोहियए य हालिदए य ११' स्यात् कालांश्च नीलाच लोहितश्च हारिद्रश्चेत्येकादशो भङ्गः ११, 'एए एक्कारस मंगा' एते उपरि प्रदर्शिता एकादशसंख्यकाः भगा भवन्ति, 'एक्मेए पंच चउक्कसंजोगा कायव्या' एवमेते पञ्च पञ्चसंख्यकाः चतुष्कसंयोगाः कर्तव्या, 'एक्केकसंजोए एक्कारस भंगा' एकैकसंयोगे एते एव एकादश भङ्गा भवन्ति 'सब्वे ते चउक्क. संजोगेणं पणपन्नं भंगा' सर्वं ते चतुष्कसंयोगेन पञ्चपञ्चाशद५५ भङ्गा भवन्ति, सकता है १०, अथवा-'सिय कालगा य नीलगा य लोहियए य हालिहए य ११' वह अपने अनेक प्रदेशों में कृष्णवर्ण वाला दो प्रदेशों में नीलेवर्ण वाला एक प्रदेश में लोहित वर्ण वाला और एक प्रदेश में पीतवर्ण घाला हो सकता है ११ 'एए एक्कारसभंगा' इस प्रकार से ये ११ भंग होते हैं एक चतुष्क संयोग में 'एवमेए पंच चउक्क संजोगा कायन्वा' यहां पांच चतुष्क संयोग करना चाहिए 'एक्केक्कसंजोए एक्कारसभंगा' एक संयोग में ११-११ भंग पूर्वोक्त पद्धति के अनुसार हुए हैं अतः 'सव्वे ते चउकसंजोगेणं पणपन्नं भंगा' समस्त चतुष्कसंयोगी भंग ५५ हो जाते हैं पांच चतुष्क संयोग इस प्रकार से होते हैं-'काल नील लोहित और हारिन्द्र इनका एक संयोग काल लोहित हारिद्र और शुक्ल इनका दूसरा संयोग नीललोहित हारिद्र और शुक्ल इनका तीसरा संशेग काल नील हारिद्र और शुक्ल इनका चतुर्थ संयोग तथा काल नील लोहित शुल इनका पांचवां संयोग इस प्रकार ये पांच संयोग हैं । प्रत्येक पंचक संयोग में ११ भंग होते हैं अतः ५४५-५५ भग आ जाते हैं। પ્રદેશમાં પોળાવણુંવાળો હોય છે. આ દસમો ભંગ છે. અથવા રિચ વાઢા य नीलगा य लोहियए य हालिहए य ११' याताना भने प्रदेशमा વર્ણવાળો હોય છે. બે પ્રદેશમાં નીલવર્ણવાળ હોય છે. એક પ્રદેશમાં લાલ વર્ણવાળ હોય છે. તથા એક પ્રદેશમાં પીળાવર્ણવાળો હોય છે. એ રીતે આ मनियारमा छ. 'एए एकारसभंगा' मा शत मा यार सयोगमा अगिया बागा थाय छे. एवमेव पंच च उकसंजोगा कायव्वा' माडिया यतु सयासी पांय ४ . 'एकेकसजोए एकारसभंगा' ४ सयोगमा ૧૧–-૧૧ અગિયાર અગિયાર ભ ગ પંક્ત પદ્ધતિ પ્રમાણે થાય છે. જેથી 'सव्वे ते चउकसंजोगेण पणपन्न भंगा' सधा यार अयो। सो भणीत. ૫૫ પંચાવન થાય છે. પાંચ ચતુષ્ક સગી ભગે આ રીતે થાય છે. કાળા