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भगवती
इत्येवं पञ्चमो भङ्गो भवति ५ । ' मिय कालए य हालिए य सुकिल्लए य' स्यात् कालश्च पीतश्च शुक्लश्च त्रिप्रादेशिक कन्वस्यैकः प्रदेशः कालो द्वितीयः पीत स्तृतीयः शुक्ल इत्येवं रूपेण पष्ठो भङ्गो भवति । 'सिय नीलए य लोहियए य हालिदए ' स्यात् नीलश्च लोहितश्न पीतश्च त्रिमदेशिक स्कन्धस्यैकः प्रदेशो arat द्वितीयो लोहित स्तुत्यः पीतः इत्येवं रूपेण सप्तमो भङ्गो भवति । 'सिय नीलए य लोहियए य सुकिल्लए य' स्यात् नीलश्च लोहितञ्च शुक्लश्च यदा त्रिप्रदेशिस्कन्धस्यैकपदेशो नीलो द्वितीयः प्रदेशो लोहित तृतीयः प्रदेशः शुक्कस्तदष्टमो भङ्गो भवति ८ | 'सिय नीलए य हालिए य सुकिल्लए च' स्यात् नीळश्च पीतश्च प्रदेश शुक्ल भी हो सकता है छठा भंग-'लिय कालए य हालिए य, क्लिए य' ऐसा है इसमें उस त्रिदेशिक स्कन्ध का एक प्रदेश काला भी हो सकता है दूसरा प्रदेश पीला भी हो सकता है और तीसरा प्रदेश शुक्ल भी हो सकता है सातवां भंग-'सिय नीलए लोहिय य हालिए य' ऐसा है इसमें उस त्रिप्रदेशिक स्कन्ध का प्रथम प्रदेश कृष्ण के स्थान पर नीला भी हो सकता है दूसरा लाल भी हो सकता है और तीसरा प्रदेश पीला भी हो सकता है आठवां भंग - 'सिय नीलए य, लोहि यए य, सुकिल्लए य' ऐसा है इस में उस त्रिप्रदेशिक स्कन्ध का प्रथम प्रदेश नील भी हो सकता है, दूसरा प्रदेश लाल भी हो सकता है और तीसरा प्रदेश शुक्ल भी हो सकता है ८ नौचा भंग - 'मिय नीलए य, हालिए य, सुक्किल्लए य, ऐसा है इस में उस विप्रदेशिक स्कन्ध का
मनेत्रीले अहेश श्वेतवाणी पशु होई शडे छे.प छट्टो लौंग - 'स्त्रिय काल एय हालिहए य सुकिल्लए य भी प्रभा भने छे. या संगमां ते त्रयु अहेशीવાળા સ્કંધના એક દેશ કાળા વર્ણવાળા હાય છે, અને બીજો પ્રદેશ પીળા વણુ વાળા પણ હાઈ શકે છે, અને ત્રીજો પ્રદેશ શ્વેત વવાળા પણુ ખની श} छे.६ सातभा लंग भी प्रभा भने छे. 'सिय नीलए य लोहियए य हालि૬ ચ’આ ભગમાં એ ત્રણ પ્રદેશવાળા સ્કંધના પ્રથમ પ્રદેશ નીલ વણુ વાળા પણ હોઈ શકે છે અને ખીને પ્રદેશ લાલ પશુ હેાઇ શકે છે. અને ત્રીજો अहेश योगी पायु होठ शडे छे.७ माउभो लौंग - 'सिय नीलएय, लोहियएय, सुकि कल्लए य, मा प्रभावे माउभी लौंग भने छे. तेमां मे त्रयु अहेशवाजा સ્કંધના પ્રથમ પ્રદેશ નીલ વણુ વાળા પશુ ડાઈ શકે છે. ખીજો પ્રદેશ લાલ વણુ વાળા પણ હાઈ શકે છે. અને ત્રીજો પ્રદેશ શ્વેત પણ હાઇ શકે છે.૮, ह्नवे नवभो लौंग णताववामां आवे छे. 'सिय लोहियएय, हालिइएय, सुक्कि