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भगवती यदि त्रिवर्णः-वर्णत्रयवान् षट्पदेशिकः स्कन्धस्तदा 'सिय कालए य नीलए ये लोहियए य' स्यात् कालच नीलश्च लोहितश्च ‘एवं जहेब पंचपएसियरस' एवं यथैव पश्चादेशिकस्य 'सत्त भंगा' सप्त भङ्गाः, 'जाव सिय कालगाय नीलगा य लोहियए य७, सिय कालगाय नीलगा य लोहियगा य८, यावत् स्यात् कालकाच नीलकाश्च लोहितश्च७, स्यात् कालकाश्च नीलकाच लोहितकाश्चेत्यष्टमः८, अत्र यावत्पदेन पश्चप्रदेशिकस्य द्वितीयभङ्गादारभ्य षष्ठान्तस्य ग्रहणं भवति तथाहि-सिय कालए नीलए लोहियगा यर, सिय कालए नीलगा य लोहियए य३, सिय य मुक्किलए य ३, सिय हालिदगा य सुक्किलगा य ४' ये धार भंग भी पीतवर्ण और शुक्लवर्ण की एकता और अनेकता में हुए हैं इस प्रकार से मूल में ये १० विकसंयोग हैं इन १० विकसंयोगों के ये अवान्तर ४-४ अंग और हुए हैं इस प्रकार कुल विकसंयोगी यहां ४. भंग हो जाते हैं। ___ 'जइ तिबन्ने यदि वह षट्प्रदेशिक स्कन्ध तीन वर्ण वाला होता है तो या तो वह 'सिय कालए य नीलए य लोहियए य" कदाचित् कृष्णवर्ण वाला हो सकता है नीलवर्ण वाला हो सकता है और लोहित वर्ण वाला हो सकता है इस प्रकार से वह तीन वर्ण वाला हो सकता है, या यावत् पदगृहीत 'सिय कालए य नीलए य लोहियगा य २' કઈ એક પ્રદેશમાં પણ વર્ણવાળો હોય છે અને અનેક પ્રદેશમાં સફેદ qाणे डाय छे. २ 'सिय हालिहगा य सुक्किल्लए य३' भने प्रहશેમાં પીળાવવાળ હોય છે તથા કઈ એક પ્રદેશમાં સફેદવર્ણવાળો હોય छ 3' 'सिय हलिहंगा य सुक्किलगा य ४' भने प्रदेशामi alag वाणी હોય છે અને અનેક્ર પ્રદેશોમાં સફેદ વર્ણવાળ હોય છે. ૪ આ ચાર ભંગ પીળા અને સફેદ વર્ણના એકપણું અને અનેકપણાથી થયા છે. આ રીતે વિકસાયેગી ભંગો જે મુખ્ય ૧૦ દસ છે તેના એક એકના ચારચાર અવાન્તર ભેદે થવાથી દ્વિસંગી ભંગ કુલ ૪૦ ચાળીસ થાય છે.
'जह तिवन्नेछ प्रशवाणी २४५ नवाजा जाय त मा प्रमाण वाणी श छ.-'सिय कालए य नौलए य लोहियए જ કદાચ તે કાળાવવાળે હેાય છે, નીલવર્ણવાળ પણ હોઈ શકે છે અને કઈ વાર લાલ વર્ણવાળે પણ હોઈ શકે છેઆ રીતે એ ત્રણ पाणी याय छे. मा ५९। मछ. १' 'सिय कालए य नीलए य