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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ०५ ०४ पट्प्रदेशिकस्कन्धे वर्णादिनिरूपणम् ६८७ ए यहाद्दिए य४, सिय लोहियए य सुकिल्लए य४, सिय हालिए य सुक्कि लए ४,' एत्रमेते दश द्विकसंयोगा भङ्गाः पुनश्चत्वारिंशद्भवन्तीति । 'नइ तिवन्ने' 'सिय नीलए य सुकिल्लए य १, सिय नीलए य सुक्किलगा य. २, सिप नीलगाय सुकिल्लए य ३, सिय नीलगाय सुक्किललगा य ४१ ये चार भंग भी नील और शुक्लवर्ण के एकत्व और अनेकत्व को लेकर हुए हैं । अब लालवर्ण और पीतवर्ण को लेकर जो भंग होते हैं वे इस प्रकार से है- 'सिय लोहियए य हालिए य' ऐसा यह मूल भंग है इसके अवान्तर चार भंग इस प्रकार से है- सिय लोहियए य हालि६ए य १, सिलोहियए य हालिगा य २, लिय लोहिया य हालि६ए य ३ सिप लोहियगा य हालिया य ४' ये चार भंग भी लोहित और पीतवर्ण के एकत्व और अनेकत्व को लेकर संपन्न हुए हैं । इसी प्रकार से 'for लोहियए य सुकिल्लए य' इस मूल भंग के भी चार भंग होते हैं जो इस प्रकार से हैं - 'सिय लोहियए य सुकिल्लए य १, सिंघ लोहियए य सुकिल्लागा य २, सिय लोहिया य सुकिल्लए ३, सिय लोहिया य सुकिल्लगा य ४' ये चार भंग लोहित और शुक्लवर्ण के एकea और अनेकत्व में हुए हैं । पीत और शुक्लवर्ण की योजना करके जो चार भंग बने हैं वे इस प्रकार से हैं- 'सिय हालिए य सुकिल्लए य १, सिय हालिए य सुक्किलगा य २, सिय हालिंगा
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छे, ते मी असा छे-सिय नीलए य सुकिल्लए य१' 'प्रिय नीलए य सुकिल्लगाय खिय नीलगाय सुकिल्लए य ३ 'खिय नीलगा य सुक्किललगा य ४ भा ચાર ભંગા પશુ નીલવણુ અને સફેદવણુના એકપણા અને અનેકણાને લઈને થયા છે. હવે લાલવણુ અને પીળાવને લઈને જે ચાર ભગા થાય છે. ते या प्रभाये छे, 'सिय लोहियए य हालिए य१ 'त्रिय लोहियए य हालिगा य २ सय लोहिया य हालिए यर 'सिय लोहियगा य हालिदगा य४' मा यार ભગા પણ લાલવણુ અને પીળાવ ના એકપણા અને અનેક પણાથી થયા છે. એજ રીતે લાલવણુ અને ધેાળાવણુના ચૈાગથી પણ ચાર ભગા થાય છે. જે या रीते छे. - 'सिय लोहियए य सुक्किल्लए य ११ सिय लोहियए य सुकिल्ल• गाय २ सय लोहिया य सुक्किल्लए य ३ सिय लोहियगा य सुकिल्लगा य ४' આ ચાર ભગા લાલ અને સફેદ વર્ણ ના એકપણા અને અનેકપણાથી થયા છે તે જ રીતે હુવે પીળા અને સફેદ વણુના યાગથી જે ચાર ભંગા બને છે તે બતાવવામાં भावे छे -- "सिय हालिए य सुक्किल्लए य' अर्ध वार ते पीजा वर्षावाणी हाथ हे भने ।धवार सह वाशुवानी, होय हे १ 'सिय हालिए य सुक्कि लगा य२'