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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ०५ सू०१ पुगलस्य वर्णादिमत्वनिरूपणम् ५७५ त्रिंशत् , त्रिकसंयोगे दश, तथैव रसविषयेऽपि असंयोगे पञ्च, दिकसंयोगे त्रिंशत् , त्रिकसंयोगे च दश भवन्तीति ज्ञातव्यमिति, भङ्गः प्रकारश्च स्वयमूहनीयः । ___'जइ दु फासे' यदि त्रिप्रदेशिका स्कन्धो द्विस्पर्शः-स्पर्शद्वयवान् तदा 'सिय सीए य निढे य' स्यात् शीतश्च स्निग्धश्च 'एवं जदेव दुप्पएसियस तहेव चत्तारि भंगा' एवं यथैव द्विपदेशिकस्य स्कन्धस्य तथैव चत्वारो भङ्गा, कदाचित् शीतश्च स्निग्धश्वेत्येको भङ्गः १, कदाचित् शीतश्च रूक्षश्चेति द्वितीयो भङ्गा, २ स्थात् जिस प्रकार से असंयोग में ५ द्विकलंयोग में 30 और त्रिक संयोग में १० प्रकट की गई है उसी प्रकार से रससंबन्धी भंग संख्या भी असंयोग में ५दिक संयोग में ३० और त्रिक संयोग में १०होती है ऐसा जानना चाहिये तथा रससंबंधी भङ्ग प्रकार अपने आप समझ लेना चाहिये ! दो स्पर्श होने विषयक कथन इस प्रकार है-'जह दु फाले' यदि वह त्रिप्र. देशिक स्कन्ध दो रूपों वाला होता है लब वह इस प्रकार से दो रूपों वाला हो सकता है-'लिय सीए य निद्धे च कदाचित् वह शीत स्पर्शवाला
और स्निग्ध स्पर्शवाला इन दो स्पों वाला भी हो सकता है इत्यादि रुपसे विस्पर्शविषयकसमस्तकथन 'एवं जहेच दुप्पएसियल तहेव चत्तारि भंगा' जैसा द्विप्रदेशिक स्कन्ध के प्रकरण में किया गया हैं वैसा ही यहां पर कर लेना चाहिये अर्थात् द्विप्रदेशिक स्कन्ध में द्विस्पर्शता को लेकर चार भंा प्रकट किये गये हैं जैसे ही वे चार भंग यहां पर भी
સંખ્યા જેમ કે-અસંગમાં ૫ પાંચ કિક સંગમાં ૩૦ ત્રીસ અને ત્રિક સંગમાં ૧૦ દસ એ પ્રમાણે બતાવી છે. તે પ્રમાણે સના समयमा पर सभा
હવે સ્પર્શના સંબંધમાં ભંગ બતાવે છે. તેમા પહેલા બે २५ विषयमा मा प्रभार सूत्रा२ ४९ छ.-'जइ दुफाखे' ले त प्रदेश વાળ ધ બે સ્પર્શેવાળ હોય છે તે તે આ નીચે પ્રમાણેના બે સ્પશે पायो भने छरेम-खिय सिए य निद्धे य' वार ते ४॥ १५शवाणा भने સ્નિગ્ધ-ચિકણા સ્પર્શવાળા હોઈ શકે છે. વિગેરે પ્રકારે બે સ્પેશ સંબ થી मधु ४थन एवं जहेव दुपएसियस तहेव चत्वारिभंगा' २वी शत में પ્રદેશી સ્કંધના પ્રકરણમાં કહેવામાં આવ્યું છે. તે જ પ્રમાણેના ચાર ભંગ અહિયાં સમજી લેવા અર્થાત બે પ્રદેશવાળા મધમાં બે સ્પશપને લઈને ચાર ભંગ બનાવવામાં આવ્યા છે. તે જ પ્રમાણેના ૪ ચાર બંગો અહિયાં ५५ ४ा. ते मा प्रभार छ. 'सिय सीए य निद्ध य' 21 प्रमाणुना मा पडे।