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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ०५ सू०२ पुद्गलस्य वर्णादिमत्वनिरूपणम् ५९९ पंदेशो लोहिन इत्येवं तृतीयो भंगः । 'सिय कालगाय नीलए य लोहियए य' स्पात् कालको च नीलश्च लोहितच, द्वौ प्रदेशौ कृष्णौ एका प्रदेशो नीलः एको लोहितश्च तदपरः प्रदेश इत्येवं चतुर्थों अंगो भवति कृष्णनीललोहितानां परस्परसंमेलनेन । 'एवं कालनीलहालिइएहिं भंगा ४' एवं कालनीलपीतैश्चत्वारो भंगाः, कालथ नीलश्च पीतश्चेत्येको भङ्गा, कालश्च नीलश्च पीतौ चेति द्वितीयो भङ्गः, कालश्च नीलौ च पीतश्चति तृतीयो भङ्गः, कदाचित् कालौ च नीलश्च पीत कालए य नीलगा थ लोहियएय' यह तृतीय भंग है कदाचित् एक प्रदेश उसका कृष्ण वर्ण वाला भी हो सकता है कदाचित्-दो प्रदेश उसके नील वर्ण वाले भी हो सकते हैं और एक प्रदेश उसका लाल वर्ण बाला भी हो सकता है ३'सिय कालगी य नीलए य लोहियए थ' यह चतुर्थ भंडा है कदाचित् उसके दो प्रदेश काले वर्ण बाछे भी हो सकते हैं एक प्रदेश उसका नील भी हो सकता है और एक प्रदेश उसका लाल भी हो सकता है ४इन चार भंगों में कृष्ण नील और लोहित इन वर्गों का परस्पर में संमेलन किया गया है 'एवं काल नील हालिहएहि भंगा।' इसी प्रकार से कृष्ण नील और पीत इनके परस्पर के संमेलन में भंग होते हैं स्यात् कालश्च नीलश्च पीतश्च१, जैसे कदाचित् कोई एक प्रदेश काला होता है कोई एक प्रदेश नीला होता है और कोई एक प्रदेश पीला भी होता है 'स्यात् कालश्च नीलश्च पीतीश्चर' कदाचित् कोई प्रदेश इसका कृष्णवर्णવાળે પણ હેઈ શકે છે. કદાચિત તેના બે પ્રદેશ નીલવર્ણવાળા પણ હોઈ શકે છે અને તે એક પ્રદેશ લાલવર્ણવાળો પણ હોય છે. આ રીર્તને ala # छ. 'सिय कालंगा य नीलए य लोहियए य' तेना में प्रदेश miarte વાળા પણ હોઈ શકે છે. અને તેને એક પ્રદેશ નીલવર્ણવાળ પણ હોઈ શકે છે. અને એક પ્રદેશ લાલવર્ણવાળા પણ હોઈ શકે છે. આ રીતને ચે ભંગ છે. આ ચાર ભાગમાં "કૃષ્ણવર્ણ. નીલવર્ણ અને લાક્ષણને પરસ્પર એગ કરીને ४ाभी भाव्या छ 'एवं कालनौलहालिंदरहि भंगा४' में शत नसry અને પીળાવને પરસ્પરમાં જિવાથી૪ ચાર ભાગે થાય છે. આ પ્રમાણે છે. 'स्यात् कालच नीलश्च पीतवहायित् । प्रदेश पाणी डाय छ અને કોઈ એક પ્રદેશ નીલવર્ણવા પણ હોય છે અને કેઈ એક પીળાવવાળે १५ सय छे.मा पो छे.१ 'स्यात् कालच नीलश्च पीताश्वर' हाथि તેને ઈ એક પ્રદેશ કાળાવર્ણવાળ હોય છે. કોઈ એક પ્રદેશ નીલવર્ણવાળો