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प्रमैयचन्द्रिका टीका श०२० उ०५ सू०२ पुद्गलस्य वर्णादिमत्वनिरूपणम् ६१५ कालको नीलकः पीतकः शुक्लश्वेति तृतीयः। 'सिय कालए लोहियए हालिए सुकिल्लए य' स्यात्-कदाचित् कालको लोहितका पीतकः शुक्लकश्चेति चतुर्थः। 'सिय नीलए लोहियए हालिइए मुश्किल्लए य' स्यात् कदाचित् नीलको लोहितकः पीतक शुक्लकश्वेति पश्चमो भंगः, 'एवमेव चउकगसंजोए पंचभंगा' एवम्पूर्वोक्तमकारेण एते चतुष्कसंयोगे पञ्च भंगा भवन्तीति। 'एए सव्वे नउई भंगा' एते सर्वे नवतिर्भङ्गा, तथाहि-असंयोगे पञ्च ५, द्विकसंयोगे चत्वारिंशत् ४०, है। 'सिय कालए नीलए हालिइए सुकिल्लए य' कदाचित् वह किसी एक प्रदेश में कालेवर्ण वाला भी हो सकता है किसी एक प्रदेश में नीलेवर्णवाला भी हो सकता है किसी एक प्रदेश में पीलेवर्ण वाला भी हो सकता है और किसी एक प्रदेश में शुक्ल भी हो सकता है ३ 'सिय कालए लोहियए हालिहए स्तुश्किल्लए ' कदाचित् वह किसी एक प्रदेश में वह कृष्णवर्ण भी हो सकता है किसी एक प्रदेश में लालवर्ण चाला भी हो सकता है किसी एक प्रदेश में पीलेवर्ण वाला भी हो सकता है और किसी एक प्रदेश में शुक्लवर्ण वाला भी हो सकता है ४ 'सिय नीलए लोहियए हालिहए सुविकल्लए य कदाचित् वह किसी एक प्रदेश में नीलवर्ण वाला भी हो सकता है किसी एक प्रदेश में लालवर्ण वाला भी हो सकता है किसी एक प्रदेश में पीलेवर्ण वाला भी हो सकता है और किसी एक प्रदेश में शुक्लवर्ण वाला भी हो सकता है ५ इस पूर्वोक्त प्रकार से ये चतुष्कसंयोग में पांच भंग होते हैं । 'एए सव्वे नउई भंगा' इस प्रकार से ९० भंग वर्ण को आश्रित करके यहां चतुः प्रदेशी स्कन्ध में हुए हैं असंयोग में ५ भंग द्विकसं योग में ४०, त्रिकसंयोग सुकिल्लए य' हा मामा आ व पाणी डाय छे. ભાગમાં પીળા વર્ણવાળો હોય છે. અને કોઈ એક ભાગમાં ધોળા વર્ણવાળે પણ હોઈ શકે છે. એ પ્રમાણેને ચાર પ્રદેશ સ્કંધને ત્રીજો ભંગ બને છે. ૩ 'सिय कालए लोहियए हालिहए सुस्किल्लए य' य तान પ્રદેશમાં નીલ વર્ણવાળો હોય છે. કેઈ એક પ્રદેશમાં લાલ વર્ણવાળો પણ હોઈ શકે છે. કેઈ એક ભાગમાં પીળા વર્ણવાળ પણ હોઈ શકે છે અને કેઇ એક ભાગમાં ધોળા વર્ણવાળો પણ હાઈ શકે છે ૫ આ રીતે પૂક્તિ माथी या२ सयाजीनामा पांय | मन छ. 'एए सव्वे नई भगा' આ ચાર સગી ભાગોમાં વર્ણ સંબંધી ૧૦ દસ ભગ બન્યા છે. અસંગી ૫ પાંચ અંગે કહ્યા છે. હિક સમાં ૪૦ ચાળીસ અંગે તથા ત્રિક