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भगवतीसूत्रे वर्णत्रयवान् तदा सिय कालए नीलए लोहियए य' स्यात्-कदाचित् कालको लीलको लोहितकश्चेति प्रथमः १, एकस्मिन् कृष्णता तदपरदेशे नीलवम् अरशिष्टपदेशेषु लौहित्यमिति मथमाः १ । 'सिय कालए नीलए लोहियगा य २,' स्यात्-कदाचित् कालको नीलको लोहित-काश्च कृष्णनीलयोरेकरवं लोहित्येचानेकत्वम् इति द्वितीयो भङ्गः २ । 'सिय कालए नीलगाय लोहियए य३' स्यात् कालको नीलकाश्च लोहितश्चेति प्रथमतृतीययोरेकल्वं मध्यवर्तिनि च बहुवचनयदि वह पंचादेशिक स्कन्ध तिबन्ने' तीन वर्णों वाला होता है--तो इस त्रिवर्णवत्ता के सामान्य कथन में वह इस प्रकार से तीनवणीवाला हो सकता है-'विध कालए नीलए लोहियए य' कदाचित् वह काले घर्णवाला भी हो सकता है नीलवर्णवाला भी हो सकता है और लालवर्णवाला भी हो सकता है १ तात्पर्य इसका ऐसा है कि एक प्रदेश में कृष्णता दूसरे एकप्रदेश में नीलता और अवशिष्टप्रदेशों में लौहित्य हो सकता है ऐसा यह प्रथम भंगशा अर्थ हैं 'सिय कालए नीलए लोहियगा य' कदाचित् वह कृष्णवर्णगला भी हो सकता है नीलवर्णधाला भी हो सकता है और अनेक प्रदेशों में लालपर्णवाला भी हो सकता है २ यहां पर कृष्ण और नील में एकत्व और लौहित्य में
अनेकस्य कहा गया है इस प्रकार से यह द्वितीय भंग है 'सिय कालए । नीलगाय लोहियए य३' कदाचित् वह अपने एकप्रदेश में कालेवर्णवाला
भी हो सकता है अनेक प्रदेशों में वह नीलवर्णवाला भी हो सकता है ' ने या पांच प्रदेश २४५ 'तिवन्ने' त्रय पवाया जाय तो मात्रय -વર્ણપણના સામાન્ય કથનમાં તે આ નીચે કહ્યા પ્રમાણે ત્રણવર્ણવાળ હોઈ શકે છે. 'बिय कालए नीलए लोहियए य य त जापवाणे ५ ? છે. નીલવવા પણ હોઈ શકે છે. અને લાલવર્ણવાળો પણ હોઈ શકે છે. આ પહેલે ભંગ છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે તેના એક પ્રદેશમાં કાળવણું પણ બીજા એક પ્રદેશમાં નીલવર્ણપણું અને બાકીના બે પ્રદેશોમાં લાલવણુંવાળે હોઈ શકે છે. તે પ્રમાણે પહેલે ભંગ છે,
'सिय कालए नीलए लोहियगा यर' हान्य ताप वाम-4Y શકે છે. નીલવર્ણવાળા પણ હોય છે. અને અનેક પ્રદેશમાં લાલવર્ણવાળે પણ હોઈ શકે છે.૨ આ ભંગમાં કાળાવમાં અને નીલવર્ણમાં એક વચન तथा स भी महुवयन हुं छे, मा शत भाले मन छे. 'सिय कालप नीलगा य लोहियए य३' ४ायत पाताना ६ प्रदेशमा वागा