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प्रमेयचन्द्रिका टीका शे०२० उ०५ ०४. पद्मदेशिक स्कन्धे वर्णादिनिरूपणम् ६८३ सुकिल्लए य' स्यात् कालः स्यात् नीलः स्यात् लोहितः स्यात् हारिद्रः स्यात् शुक्लइति एकवर्णविषयका भङ्गाः । यदि द्विवर्णस्तदा 'सिय कालए य नीलए य१, सिय कालए य नीलगा य२, सिय कालगा य. नीलए य३, सिय कालगाय नीलमा य४' स्थात् कालच नील त्येकः स्यात् कालश्च नीलाच इति द्वितीयः २, स्यात् काला नीलति तृतीयः ३, स्यात् कालाथ नीलायेति चतुर्थः ४ । सिय में ऐसा है - 'जइ एगवन्ने सिय कालए य सिय नीलए य सिय लोहि यए य सिय हालिए व सिय सुक्किल्लए य' यदि वह षट्प्रदेशिक स्कन्ध एकवर्ण वाला है तो वह या तो कदाचित् कालेवर्ण वाला हो सकता है या कदाचित् नीले वर्ण वाला हो सकता है या कदाचित् लोहित वर्ण वाला हो सकता है या कदाचित् पीनवर्ण वाला हो सकता है या कदाचित् शुक्लवर्ण वाला हो सकता है इस प्रकार से ये ५ भंग एकवर्ण को लेकर हो सकते हैं । यदि वह षट् प्रदेशिक स्कन्ध दो वर्णों वाला हो तो - 'सिय कालए य नोलए य १ सिय कालए य नीलगाय २ सिय कालगा य नीलए य ३ सिय कालगा व नीलगा य ४' इस प्रकार से वहां ये ४ भंग होते हैं । कदाचित् वह कालेवर्ण बोला और नीले
वाला हो सकता है १ अथवा - एक प्रदेश उसका कृष्णवर्ण वाला और अनेक प्रदेश उसके नीले वर्णवाले हो सकते हैं २, अथवा - अनेक प्रदेश उसके कृष्णवर्ण वाले और एक प्रदेश उसका नीले वर्ण वाला हो सकता है ३, अथवा अनेक प्रदेश उसके कालेवर्ण वाले और अनेक प्रदेश उसके नीलेवर्ण वाले हो सकते हैं ४, इस प्रकार से ये ४ भंग
सभवु तेनु वर्षात अहार मा प्रभाले छे.- 'जइ एगवन्ने सिय कालए य सिय नीलए य सिय लोहियए य सिय हालिए य सिय सुक्किल्लए य' ले ते छ પ્રદેશવાળા સ ધ એક વણુ વાળા હોય તે કોઈવાર કાળા વણુ વાળા હાય છે, અથવા કેાઈવાર નીલ વણુધાળા હેાય છે. અથવા કોઇવાર લાલ વાળા હાથ છે, કેાઈવાર પીળાવાળા હાય છે અથવા કોઈવાર સફેદવણુ વાળે હાય છે. ले ते प्रदेशवाणी संध मे वर्षावाणी होय तो 'सिय कालए य नीलए य१' अधवार ते अावार्थ वाणी होय छे मने नीसवर्थ वाणी पशु होय छे. १ यि कालए य नीलगा यर' अथवा तेनी मे अहेश अणावार्थ वाणी होय छे. अने अनेङ अहेश। नीसवणुवाजा होय छे.२ अथवा 'सिय कालगा थ नीलए य३' तेना भने अहेश अणावार्थ वाणा होय छेड अहेश नीलवायु वाणी होय छे. 3 'सिय कालगा य પ્રદેશા કાળાવણુ વાળા હેાય છે. અને અનેક
नीलया य४' अथवा तेना अनेक પ્રદેશા નીલવણુ વાળા હાય છે,