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प्रेमयचन्द्रिका टीका श०२० उ०५ सृ०२ पुद्गलस्य वर्णादिमत्वनिरूपणम् ५६५६ शुक्लश्च प्रदेशयोर्नीलत्वात् मद्देशयोः शुक्लत्वादिति प्रथमः,, स्यात् नीलक्षा शुक्लाथ प्रदेशमात्रस्य नीलत्वात् प्रदेशत्राणां शुक्लस्वादिति द्वितीयः, स्पातः नीलाश्च शुक्लश्च प्रदेशत्रयाणां नीलत्वात् प्रदेशमात्रस्य शुक्लत्वादिति तृतीया स्यात् नीलाश्च शुक्लाश्च इति चतुर्थों भंगः ४, एवमिहापि चत्वासे मंगाः इति । 'सिय लोहियए य हालिदए य ४' स्यात् लोहितश्च पीतश्च अनापि चत्वारो भंगार तथाहि-स्यात् लोहितश्च पीतश्च प्रदेशौ लोहितौ पीतौ च प्रदेशौं इति मयसो करके जो भंग पनते हैं उन्हे सूत्रकार दिखलाते हैं-'सिय नीलए ये शुक्किल्लए य' यह प्रथम भंग है-इल में दो प्रदेशों में नील वर्ण और दो प्रदेशों में शुक्ल वर्ण हो सकता है ऐसा कहा गया है 'स्याल नीलश्च शुक्लाश्च' यह द्वितीय भंग है इसमें प्रथम एक प्रदेश में नील वर्ण और प्रदेशत्रय में शुक्ल वर्ण हो सकता है ऐसा कहा गया है 'स्यात् नीलाश्च शुक्लश्च' इस तृतीय भंग में प्रथम तीन प्रदेशों में नील वर्ण और एक प्रदेश में शुक्ल वर्ण भी हो सकता है ऐसा कहा गया है 'सिय नीलाश्च शुक्लाइच' यह चतुर्थ भंग है इस में अनेक अंशों में नील वर्ण और अनेक ही अंशों में शुक्ल वर्ण का सद्भाव प्रकट किया गया है इस प्रकार से ये चार भंग हैं 'सिय लोहियए य हालिद्दए य४' इस प्रकार के कथन में भी जो चार अंग होते हैं वे इस प्रकार से हैं 'स्थात् लोहितश्च पीतश्च१' दो प्रदेश उसके लालवर्ण वाले भी हो सकते સાથે ધોળાવણને એને જે ચાર ભાગે બનાવવામાં આવે છે. તે સૂત્રકાર मतावे छे.
'सिय नीलए य सुकिल्लए य१ मा ५९ मा में प्रदेशमा मतपणे અને બે પ્રદેશોમાં ઘેળવણું હોઈ શકે છે. એ રીતને આ પહેલે ભંગ छ. स्यात् नीच मलाश्चर' साभा पडसा से प्रदेशमा नाप भने બાકીના ત્રણ પ્રદેશમાં શ્વેતવર્ણ હોઈ શકે છે. એ રીતને આ બીજો ભંગ छे२. 'स्यात् नीलाश्च शुक्लश्च३' मा ममा पडे। 'प्रदेशमा नीस અને એક પ્રદેશમાં શુકલવર્ણ પણ હોઈ શકે છે એ રીતને આ ત્રીજો ભંગ छ.३ 'सिय नीलाश्च शालाश्च४' मा मा भने ४ मशहम नीसा भने અનેક અશામાં ઘ ણું હોઈ શકે છે. આ ચોથો ભંગ છે. આ રીતના ચાર ભંગ બને છે. હવે લાલવણું અને પીળાવણની સાથે જીને જે ચાર બને છે તે બતાવે છે. _ 'सिय लोहियए य हालिहए य१' स्यात् लोहितश्च पीतश्च तेनामे अशा લાલ વર્ણવાળા હોય છે. અને એ પ્રદેશે પીળવર્ણવાળા હોય છે. આ પહેલે