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प्रमैयचन्द्रिका दीका श०२० उ०५ सू०१ पुद्गलस्थ वर्णादिमत्वनिरूपणम् ५४७ रूक्षश्च । परमाणुपुद्गलस्वरूपमभिधाय तज्जनितस्कन्धस्वरूपं वक्तुं प्रथमतो द्विप्रदेशिकस्कन्धस्वरूपमाह-'दुप्परसिए थे' इत्यादि, 'दुप्पएसिए णं भंते ! खंधे' द्विपदेशिकः खलु भदन्त ! स्कन्धः 'कइबन्ने' कतिवर्णः, द्वौ प्रदेशौ-परमाणुरूपौ विद्यते अश्यवतया यस्य स्कन्धस्यावयविनः स द्विपदेशिकः स्कन्धः कतिवर्णवान् कविगन्धवान् कतिरसवान् कतिस्पर्शवान् भवतीति प्रश्ना, उत्तरमाह-'एवं जहा' इत्यादि, 'एवं जहा अट्ठारसमप्लए छठुद्देसए जाव सिय चउफासे पन्नत्त' एवं यथाऽष्टादशशते षष्ठोद्देशके यावत् स्यात् चतु:स्पर्शः प्रज्ञप्तः, यथाऽष्टारूक्षस्पर्श वाला भी हो सकता है २ 'सिय उसिणे य निद्धे य' और कदाचित् वह उष्णस्पर्शवाला एवं स्निग्धस्पर्शवाला भी हो सकता है
और कदाचित् वह 'सिय उलिणे य लुक्खे य' उष्णस्पर्श वाला और रुक्षस्पर्शवाला भी हो सकता है।
इस प्रकार से परमाणुपुद्गल के स्वरूप का कथन करके अब सूत्र. कार परमाणुजनित स्कन्ध के स्वरूप का कथन करने की कामना से प्रथम द्विपदेशी स्कन्ध के स्वरूप का कथन करते हैं-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-'दुप्पएसिएज भते ! खंधे कइवन्ने' हे भदन्त! जिस स्कन्धरूप अवयवी के दो परमाणुरूप प्रदेश हैं अर्थात् जो स्कन्ध दो परमाणुओं के संयोग से जन्य हुआ है ऐसा वह द्विप्रदेशिकस्कन्ध कितने वर्णों वाला, कितने गंघोंबाला, कितने रखों वाला और कितने पशी चाला होता है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु ने कहा है-'एवं जहा अट्ठारसमलए छट्ठद्देलए जाव सिय चउफासे पनत्ते' हे गौतम ! जैसा १५. मन मापा २ ५६५
साछ 'सिय उसिणे य निद्धे यमन કદાચિત તે ઉર્થ સ્પર્શવાળા અને રૂક્ષ સ્પર્શવાળા પણ હોઈ શકે છે.
આ રીતે પરમાણુના સ્વરૂપનું કથન કરીને હવે સૂત્રકાર પરમાણથી થતાં ક ના સ્વરૂપનું કથન કરવાની ઈચ્છાથી પહેલાં બે પ્રદેશવાળા ના ११३५नु ४५ परेछ तमा गौतम स्वामी प्रभुने मे पूछे छ है-'दुप्पएसि णं भवे ! खंघे कइवण्णे' हे मानन २ २ ३५ अवयवीन गे-परमार પ્રદેશ છે, અર્થાત જે સ્કંધ બે પરમાણુના સંગથી ઉત્પન્ન થયે છે એ તે બે પ્રદેશવાળ સર્કલ કેટલા વર્ષો વાળે, કેટલા ગધેવાળે, કેટલા રસે. વાળા અને કેટલા સ્પશેવાળો હોય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે 3-'एवं जहा अद्वारसमसए छ?देखए जार सिय चउफासे पन्नत्ते' ३ गौतम।