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भगवतीयत्रे टीका--'कइविहा णं भंते ?' कविविधा खलु भदन्त ! वेदना प्राप्ताः कथिता इति वेदनाविषयका प्रश्ना, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'दुबिहा वेयणा पन्नत्ता' द्विविधा-द्विमकारका वेदना मजप्ता 'तं जहा तद्यथा 'निदा य अनिदा य' निदा च अनिदा च, 'नि' नियतं दानं शुद्धिर्जीवस्य 'द्वैप शोधने' इति धातो निदेति पदं सिद्धं भवति तथा च निदा ज्ञानम् आभोगः, तद् युक्ता वेदनाऽपि निदेति कथ्यते आभोगवतीत्यर्थः ज्ञानपूर्वकं वेदनं निदा अथवा सम्यग् विवेकपूर्वकं वेदन निदेति अनिदा अनाभोगवती वेदनेति 'निदा य' इति निदाकम् , अत्र क प्रत्ययः स्वार्थिकः अतो निदां वेदनामिति । पुनः प्रश्नयति 'नेरइया ण भंते !' नैरयिकाः खल्ल भदन्त ! 'किं निदायं वेयणं वेएंति
'कइविहे ण भते । वेयणा पत्नत्ता' इत्यादि ।
टीकार्थ--इस सूत्र द्वारा गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है कि:-कइ. विहाणं भंते । हे भदन्त ! वेदना कितने प्रकार की कहाँ गई है ? उत्तर में प्रभु ने कहा है-गोयमा' हे गौतम ! 'दुविहा०' वेदना दो प्रकार की कही गई है। तं जहा-वे दो प्रकार उस के ऐसे हैं-'निदा य अनिदा य' निदा और अनिदा 'द्वैप्शेधकने' नि उपसर्ग पूर्वक शेषनार्थ बैप् धातु से निदा यह पद घना है नियत जो जीव की शुद्धि है उसका नाम निदा है निदा, ज्ञान और आभोग ये सब पर्यायवाची शब्द हैं इस निदा से युक्त वेदना भी निदारूप से कह दी गई है जो वेदना आभोग युक्त होता है ज्ञानपूर्वक होता है अथवा सम्यग् विवेक पूर्वक होता है वह निदा हैं तथा अनाभोगवाली जो वेदना है वह अनिदा है।
ટીકાઈ–આ સૂત્ર દ્વારા ગૌતમસ્વામીએ પ્રભુને એવું પૂછયું છે કેહે ભગવન વેદના કેટલા પ્રકારની કહેવામાં આવી છે તેના ઉત્તરમાં प्रभुझे ४ -'गोयमा! 3 गौतम! 'दुविधा वेयणा पण्णत्ता' बना में HIR Bाम मावी छ. 'तजहा' मा प्रभारी छे. 'निदा य अनिदा यो નિદા અને અનિદા “નિ ઉપસર્ગ પૂર્વક શોધનાર્થક ટૅપ ધાતુથી નિદા એ પાઠ બનેલ છે. નિયત જે જીવની શુદ્ધિ હોય તેનું નામ નિદા છે. નિદા, જ્ઞાન અને આગ એ બધા પર્યાયવાચી શબ્દો છે. આ નિદાથી થવાવાળી વેદના પણ નિદા રૂપે જ કહી છે આગ યુક્ત-જાણપૂર્વક જે વેદના થાય છે, અથવા સમ્યક્ વિવેક પૂર્વક જે વેદના થાય છે તે નિદા છે. તથા અનાજોગવાળી જે વેદના છે, તે અનિદા છે.