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प्रमैयचन्द्रिका टीका श०१९ उ०८ सू०१ जीवनिवृत्तिनिरूपणम् कतिविधा खलु भदन्त ! 'अन्नाणनिती पन्नत्ता' अज्ञाननिवृत्तिः प्रज्ञप्ता ? हे भदन्त ! अज्ञाननिवृत्तौ कतिविधत्वमितिप्रश्ना, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा!' हे गौतम ! 'तिविहा अन्नानिवत्ती पन्नत्ता' त्रिविधा अज्ञाननितिः प्रज्ञप्ता, 'तं जहा' तधथा 'सइअन्नाणनिबत्ती' सत्यज्ञाननिवृत्तिः, 'सुयअन्नाणनिव्वची' श्रुनाज्ञाननिर्वृतिः 'विभंगनाणनित्यत्ती' विभङ्गज्ञाननित्तिः, तथा च मत्यज्ञाननिवृत्ति-श्रुवाज्ञाननित्ति-विभङ्गज्ञाननिवृत्तिभेदेन अज्ञाननिवृत्तयः त्रिविधा मता इत्यर्थः 'एवं जल जइ अन्नाणा जाव वेमाणियाणं' एवं यस्य यानि अज्ञानानि तानि तस्य वक्तव्यानि, यावद्वैमानिकानाम् नारकादारभ्य वैमानिकदेवपर्यन्तम् अज्ञाननिर्वृत्तयो वक्तव्या इति ।१७। 'कइविहा णं भंते' कति विधाः खलु भदन्त ! 'जोगनिम्नत्ती पन्नत्ता' योगनिवृत्तिः प्राप्ता ! योगनिवृत्तेः कतिविधस्वमितिपश्नः, उत्तरमाह-'मोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! अतः यह अज्ञान निति कितने प्रकार की होती है ? इस गौतम के प्रश्न के उत्तर में प्रभु ने उनसे ऐसा कहा कि-'गोयमा' हे गौतम ! 'अण्णाणनि' अज्ञाननित्ति तीन प्रकार की होती है 'मह अन्ना० सुयअन्नाण. एक मत्यज्ञान नित्ति, दूसरी श्रुताज्ञाननित्ति और तीसरी विभंगज्ञान नित्ति एवं जस्ल जइ अ.' इस प्रकार से जिस जीव को जितने अज्ञान हो उस जीव को उतने अज्ञानों की नित्ति कह लेनी चाहिये इस प्रकार ले नारक से लेकर वैमानिकदेवों तक अज्ञान नित्ति वक्तव्य है 'जोगनिव्वत्ती का वि० हे भदन्त ! योगनित्ति कितने प्रकार की कही गई है? इस गौतम के प्रश्न के उत्तर में प्रभुने उनसे ऐसा कहा है कि गौतम ! 'जोगनि
જ્ઞાનનિવૃત્તિની વિરોધી અજ્ઞાનનિવૃત્તિ છે. તેથી હવે ગૌતમ સ્વામી અજ્ઞાનનિવૃત્તિના વિષયમાં પ્રભુને પૂછે છે કે હે ભગવન અજ્ઞાનનિવૃત્તિ કેટલા
१२नी छ ? तना उत्तरमा प्रभुमे तेमन यु -'गोयमा ! गौतम! 'अण्णाणनि' अज्ञाननिवृत्ति प्रा२नी अवाम मावी छे. 'मइअन्ना० सुयअन्नाण' मे मति मज्ञाननियति भी श्रुत मज्ञान निति, भने त्री विज्ञाननिति एवं जस्स जइ अ०' सशत रे २८९ मज्ञान होय તે જીવને તેટલા અજ્ઞાનની નિવૃત્તિ કહેવી જોઈએ આ રીતે નારકોથી माला वैमानिक व सुधी भज्ञाननिवृत्ति छ 'जोगानिव्वत्ती का वि०' હે ભગવદ્ જગનિવૃત્તિ કેટલા પ્રકારની કહેવામાં આવી છે? તેના ઉત્તરમાં