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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१९ ३०९ ०१ करणस्वरूपनिरूपणम्
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'गोमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'पंचविहे सरीरकरणे पन्नत्ते' पञ्चविधं पञ्चप्रकारकं शरीरकरणं प्रज्ञप्तम् - कथितमित्युत्तरम् 'तं जहा ' तद्यथा - ओरालियसरीरकरणे' औदारिकशरीरकरणम्, 'जाव कम्यगसरी रकरणे' यावत् कार्मणशरीरकरणम् अत्र यावत्पदेन आहार कवै क्रियतैजसशरीराणाम् ग्रहणं भवति तथा चौदारिका-हारक - वैक्रिय - तेजस - कार्मणभेदात् पञ्चविध शरीरकरणं भवतीति भावः । ' एवं जाव वैमाणियाणं जस्स जइ सरीराणि' एवं यावद्वैमानिकानां यस्य यानि शरीराणि नारकादारभ्य वैमानिकान्तजीवानाम् शरीरकरणं भवतीति ज्ञेयम् परन्तु यrय जीवस्य यादृशं शरीरं भवति तस्थ जीवस्य तादृशानि एव शरीरकरशरीरकरण कितने प्रकार का कहा गया है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु ने कहा है कि- 'गोमा' हे गौतम! पंचविहे सरीरकरणे पण्णत्ते' शरीर करण पांच प्रकार का कहा गया है जैसे- 'ओरालिय० ' औदारिक शरीरकरण यावत् कार्मणशरीरकरण यहां यावत्पद से आहारक, वैक्रिय और तैजस शरीरों का ग्रहण हुआ है तथा च औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तेजस एवं कार्मणशरीर के भेद से शरीरकरण पांच प्रकार का होता है 'एवं जाच वैमाणियाणं०' नारक से लेकर वैमानिक तक के समस्त संसारी जीवों को जिस जीव को जो शरीर होता है उस जीव को वही करण 'होता है सब जीव को सब करण नहीं होते हैं, तात्पर्य कहने का यह है कि नारक और देवों को तेजस फार्मण और वैश्शिरीर होते है इसलिये इनके ये तीनों ही शरीरकरण होते हैं । तिर्यश्च एवं मनुष्यों के तैजस और कार्मणशरीर के साथ औदारिक शरीर होता है इसलिये
'कवि णं भते ! सरीरकरणे पण्णत्ते' हे भगवन् शरीर ईरा टला अारना डेवामां आवे छे ? या प्रश्नना उत्तरभां अलु छे - 'गोयमा ! डे गौतम 'पंचविहे सरीरकरणे पण्णत्ते' शरी२४२७ पांच अहारतुडेवाभां मावेस छे. प्रेम है- 'ओरालिय०' मोहारि शरीर ४२५१, भाई।२४ शरीर કરણ વૈક્રિયશરીરકરણ૩, તૈજસશીકરણ૪ અને કાળુશરીરકરણુપ એ રીતે શરીરકરણ પાંચ પ્રકારનુ` કહેવામાં આવેલ છે,
'एव जाव वैमाणियाणं' नारथी मारलीने वैभानिः सुधीना मधा ४ સસારી જીવાને જે શરીર હાય છે, તે જીવને તેજ કરણ હાય છે. ખા જીવાને બધા કરણ હાતા નથી. કહેવાનુ તાત્પર્ય એ છે કે-નારક અને દેવાને તૈજસ, કામણુ અને વૈક્રિય શરીર ઢાય છે. તેથી તેએને ક્ષા ત્રણે શરીર કરણા હ્રાય છે. તિયચ અને મનુષ્યાને તૈજસ અને કાણુ