________________
-
प्रमैयचंन्द्रिका टीका शे०१९ उ०८ सू०१ जीवनिवृत्तिनिरूपणम् ४२१ जहा' तथा 'एगिदियजीवनिव्वत्ती' एकेन्द्रियजीवनिवृत्तिः, एकेन्द्रियाणां पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतीनां निवृत्तिरिति एकेन्द्रियजीशनिवृत्तिः, 'जाव पंचिं. दियजीवनिव्वत्ती' यावत् पञ्चेन्द्रियजीवनिर्वृत्तिा, अत्र यावल्पदेन द्वीन्द्रियादारभ्य चतुरिन्द्रियान्तानां जीवानां संग्रहो भवति इति, पञ्चेन्द्रियजीवपदेन पञ्चन्द्रियर्यिः श्वमारभ्य वैवानिकान्तानां ग्रहणं भवति । 'एगिदियजीवनिबत्ती भंते ! एकेन्द्रियजीवनिर्वृत्तिः खलु भदन्त ! 'काविहा पनत्ता' कतिविधा प्रज्ञप्तागौतम जीवनिन्ति पांच प्रकार की कही गई हैं 'तं जहा' जो इस प्रकार से हैं-'एगिदियजीवनिव्वत्ती' पृथिवी, अप, तेज, वायु और वनस्पति ये जो एकेन्द्रिय जीव हैं, इन एकेन्द्रिय जीयो की जो अपनो २ पर्याय से उत्पत्ति होती है अर्थात् एकेन्द्रियजातिनामकर्म के उदय से जो जीव की एकेन्द्रिय पृथिवीकायिक आदिरूप से उत्पत्ति होती है वह एकेन्द्रियजीवनिवृत्ति है । 'जावविदियजीवनिम्नत्ती' यावत् पञ्चन्द्रियजीवनित्ति यावत् पञ्चेन्द्रियजाति नामकर्म के उदय से जो जीव की यावत् पश्चन्द्रिय नारक तिर्यञ्चादि पर्यायरूप से उत्पत्ति होती है वह पञ्चेन्द्रिय जीवनिवृत्ति है यहां याश्स्पद से द्वीन्द्रिय जीव से लेकर चौह. न्द्रिय तक के जीवों का ग्रहण हुआ है तथा पञ्चेन्द्रिय जीच पद से पश्चे न्द्रियतिर्यच, से लेकर वैमानिकान्त जीवो का ग्रहण हुआ है। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'एगिदियजीवनिवत्ती' हे भदन्त ! एकेन्द्रिय जीव निवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? इसके उत्तर ५४२-ी ४ वाम मावी . 'तं जहा' २ . प्रमाणे छ. 'एगिदियजीव निव्वती पृयि, भय, ते४४ायि४, वायुयि भने वनस्पतिथि: જે આ એકેન્દ્રિય ની પિતપોતાની પર્યાયથી ઉત્પત્તિ થાય છે. અર્થાત્ એકેન્દ્રિય જાતી નામકર્મના ઉદયથી જીવની એકેન્દ્રિય પૃશિવકાયિક, વિગેરે રૂપથી उत्पत्ति थाय छ, तहन्द्रियनित छ. 'जाव पंचिंदियजीवनिव्वत्ती' થાવત્ પચેન્દ્રિય જીવ નિવૃત્તિ યાવત પચંદ્રિય નામકર્મના ઉદયથી જીવની જે થાવત્ પંચેન્દ્રિય નારક, તિર્યંચાદિ પર્યાય રૂપથી ઉત્પત્તિ થાય છે - તે પંચેન્દ્રિય જીવ નિર્વતી છે. અહિયાં યાત્પદથી કીન્દ્રિય જીથી આરંભીને ચાર ઈ દિયવાળા જીવો સુધીના છવો ગ્રહણ કરાયા છે. તથા પંચેન્દ્રિય પદથી પંચેન્દ્રિય તિર્યંન્યથી આરંભીને વૈમાનિક સુધીના જ ગ્રહણ કરાયા છે.
शथी गौतम स्वामी प्रभुने से पूछे छे हैं-'एगिदियजीव निवती' હે ભગવન્ એકેન્દ્રિય કવ નિવૃત્તિ કેટલા પ્રકારની કહેવામાં આવી છે જે તેના