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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१९ उ०८ सू०१ जीवनिवृत्तिनिरूपणम् ४२३ हे गौतम ! 'दुविहा पन्नत्ता' द्विविधा पज्ञप्ता 'तं जहा' तद्यथा 'महुमपुढवीकाइय. एगिदियजीवनिबत्ती य' सूक्ष्मपृथिवीकायिकैकेन्द्रियजीवनिचिश्व 'बायरपुढचीकाइयएगिदियजीवनिम्बत्ती य' बादरपृथिवीकायिकैकेन्द्रियजीवनितिश्च तथाचसूक्ष्मवादरभेदेन पृथ्विकायिकैकेन्द्रियजीवनिर्वृत्तिद्विधा भवतीति, ‘एवं एएणं अभिलावणं भेदो' एवमेतेन अभिलापेन भेदो वक्तव्यः 'जहा बडगवंधी तेयगसरीरस्स' यथा वर्धकबन्धस्तैजसशरीरस्य यथा महल्लबन्धाधिकारे अष्टमशते नवमोदेशकाभिहिते तैजसशरीरस्य बन्धः कथितस्तेनैव प्रकारेण अत्र निवृत्तिर्वक्तव्या कहते हैं-'गोयमा दुविहा पन्नता' हे गौतम! पृथिवीकायिकएकेन्द्रियजीवनिवृत्ति दो प्रकार की कही गई-सुहमपुढवीकाइयएगिदियजीवनिव्वत्ती पायरपुढवी० एक सूक्ष्म पृथिवीकाधिक एकेन्द्रियजीवनित्ति और दूसरी चादर पृथिवीकायिकएकेन्द्रियजीवनिर्वृत्ति तथा च सूक्ष्म और बादर के भेद से पृथिवीकायिक एकेन्द्रिय जीव निवृत्ति दो प्रकार की होती है'एवं एएणं अभिलावेणं भेदो जहां बडगबंधो तेयगसरीरस्स' जिस प्रकार से अष्टमशतक के नौंवे उद्देशे में अभिहित महद्वन्ध के अधिकार मैं तेजसशरीर का बन्ध कहा गया है उसी प्रकार से इस पाठ द्वारा निवृत्तिका कथन कर लेना चाहिये तात्पर्य कहने का यह है कि-इस विषय को जानने के लिये अष्टम शतक का नौवां उद्देशक देखना चाहिये कहां तक वह उद्देश देखना चाहिये तो इसके लिये 'जाव सव्वट्ठसिद्धअणु छ -'गोयमा! दुविहा पण्णत्ता' गौतम ! पृथ्वजयि मेन्द्रिय पनिवृत्ति मे २नी ही छे, 'तंजहा' मा प्रमाणे छ. 'सुहुमपुढवीकाइयएगि दिय जीवनि० पायरपुढची सूक्ष्म वीयिन्द्रिय पनिवृत्ति भने બીજી બાદર પૃથ્વીકાયિક એકેન્દ્રિય જીવ નિવૃત્તિ એ રીતે સૂક્ષમ અને બાદરના महथा यि मेन्द्रिय समिति में प्रा२नी ही छ. 'एवं एएणं अभिडावेण भेदो जहा वगबंधो तेयगरीरस्सरे शत मा841 शतना नभा ઉંદેશામાં મહબંધના અધિકારમાં તેજસ શરીરને બંધ કહેલ છે. એ જ રીતે આ પાઠથી નિવૃતિનું કથન કરી લેવું. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે–આ વિષયને સમજવા માટે આઠમા શતકને નવમો ઉદ્દેશ જેવો જોઈએ. એ નવમા ઉદેશાનું अथन, या सुधीनु मड़ियां न न ते भाटे ४१ छ -'जाव सम्वद्ध